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________________ _155 उववाइय मुत्तं सू० ३१ • किं बहूणा ? कप्परुक्खए चैव अलंकियविभूसिए णरवई सकोरंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं चउचामरवाल वीजियंगे मंगलजयसद्दकयालोए मज्जणघराओ पडिणिक्खमइ । अधिक क्या कहें ? इस प्रकार अलंकारों से युक्त, वेषभूषा से सुसज्जित, राजा कूणिक ऐसा लगता था, मानों कल्पवृक्ष हो। अपने ऊपर लगाये गये कोरंट पुष्पों की मालाओं से युक्त छत्र, तथा दोनों ओर डुलाये जाते चार चामर-चंवर, देखते ही जन-जन के द्वारा किये गये मंगलमय जय शब्द के साथ कूणिक राजा स्नान-गृह से बाहर निकला। Needless to write more, elaborate more, with all his robes and decorations, looking like a kalpa-tree, when the monarch came out of the bath, there was a gracious umbrella decorated with koranța flowers spread over his head, with four câmaras being fanned from his sides. When the monarch came within the visibility of men, they shouted victory unto him. ... मज्जणघराउ पडिणिक्खमित्ता अणेग-गणनायग-दंडनायगराईसर-तलवर-मांडबिय-कोडुबिय-इब्भ-सेट्ठि-सेणावइ-सत्थवाह -दूअसंधिवाल-सद्धि-संपरिबुडे धवल-महामेह-णिग्गए इव गहगण-दिप्पंतरिक्ख-तारागणाण मज्झ ससिव्व पियदसणे णरवई जेणेव बाहिरिआ उवट्ठाणसाला जेणेव आभिसेक्के हत्थिरयणे तेणेव उवागच्छइ । स्नानगृह से बाहर निकल कर अनेक गणनायक-जनसमुदाय के प्रतिनिधि, दण्डनायक–आरक्षि अधिकारी, राजा-माण्डलिक नरपति, ईश्वर-प्रभावशाली पुरुष अथवा ऐश्वर्यशाली व्यक्ति, तलवर-राज सम्मानित ख्यातिप्राप्त नागरिक, मांडबिक-जागीरदार, कौटुम्बिक-बड़ेबड़े परिवारों के प्रमुख व्यक्ति, इभ्य--वैभवशाली, श्रेष्ठी-सेठ–सम्पत्ति एवं सुव्यवहार से प्रतिष्ठाप्राप्त, सेनापति, सार्थवाह-छोटे-छोटे व्यापारियों
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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