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Uvavaiya Suttam Sa. 30
. तब राजा कुणिक के इस प्रकार कहे जाने पर वह सेनानायक हर्षित . एवं परितुष्ट हुआ। यावत्...उसने अपने मन में प्रसन्नता का अनुभव. किया। अंजलि बाँधे-दोनों हाथ जोड़े, उन्हें सिर के चारों ओर घुमाया, अंजलि को सिर से लगाया। फिर वह यों बोला-"स्वामिन् ! आपकी आज्ञा का यथोचित पालन किया जाएगा।"
Having heard the order of the king, the Army Officer was highly pleased, till his heart expanded with glee. He folded his palms, moved them round bis head, touched his forehead with them and submitted-"Your Majesty! Your wishes will be duly honoured.”
आणाइ विणएणं वयणं पडिसुणेइ । पडिसुणित्ता हत्थिवाउअं आमतेइ। आमंतेत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिा ! कूणिअस्स रण्णो भंभसारपुत्तस्स आभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेहि । हयगयरहपवरजोहकलियं चाउरंगिणिं सेणं सण्णाहिहि । सण्णाहित्ता एअमाणत्तिअं पच्चप्पिणाहि ।
यों उसने विनयपूर्वक राजा का आदेश स्वीकार करते हुए उनके ( राजा के ) वचन सुनें। सेनानायक ने यों राजाज्ञा स्वीकार कर हस्तिव्यापृत-महावत को बुलाया। वैसा कर—बुला कर इस प्रकार कहा-'हे देवानुप्रिय ! भंभसार के पुत्र राजा कुणिक के लिये उत्तम हाथी सजाकर शीघ्र ही तैयार करो। घोड़े, हाथी, रथ तथा प्रधान योद्धाओं से संगठित चतुरंगिणी सेना के तैयार होने की व्यवस्था कराओ। ऐसा करके फिर मुझे आज्ञापालन की सूचना दो।"
Then the officer who had carefully heard the order sent for the man incharge of elephants and gave him the following instruction-"Oh beloved of the gods! Get ready the best elephant for the use by king Kūņika, son of Bhambhasāra.