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________________ 138 Uvavaiya Suttam Su 29 हंत्थिरयणं पडिकप्पेहि। हयगयरहपवरजोहकलिअं च चाउरंगिणि सेणं सण्णाहिहि । सुभद्दापमुहाण य देवोणं बाहिरियाए उवट्ठाणसालाए पाडिएक्काडिएक्काइं जत्ताभिमुहाई जुत्ताइं जाणाइं . उवटठेवेह । चंपं णरि सन्भिंतर-बाहिरिगं आसित्तसित्तसुइसम्मट्ठरत्यंतरावणवीहिअं मंचाइमंचकलिअंणाणाविहरागउच्छियज्झयपडागाइपडागमंडिअ लाउल्लोइयमहियं गोसोस-सरसरत्तचंदण जाव.... गंधवट्टिभूअं करेह कारवेह । करित्ता कारवेत्ता एअमाणत्तिअं पच्चप्पिणाहि। निज्जाइस्सामि समणं भगवं महावीर अभिवंदए ।।२९॥ तब भंभसार के पुत्र राजा कूणिक ने सैन्य व्यापार में पारायण या : सैन्य से सम्बन्धित अधिकारी को बुलाकर उससे इस प्रकार कहा"हे देवानु प्रिय ! शीघतापूर्वक ही आभिषेक्य-अभिषेक के योग्य या प्रधान पद पर विधिपूर्वक स्थापित, ( राजा की सवारी में प्रयोजनीय ) हस्तिरत्नश्रेष्ठ हाथी को सजाकर तैयार कराओ। घोड़े, हाथी, रथ और श्रेष्ठ योद्धाओं से सहित या परिगठित चतुरंगिणी--चार अंगवाली सेना को सुसज्ज कराओ। सुभद्रा आदि प्रमुख देवियों--रानियों के लिये, उनमें से प्रत्येक के लिये यात्राभिमुख--गमन करने के लिये उद्यत जोते हुए सवारियों को बहिर्वती राजसभा के समीप उपस्थापित-तैयार करा कर हाज़िर करो। चंपा नगरी के बाहर और भीतर ( उसके संघाटक, त्रिक, चतुष्क, चत्वर, चतुर्मुख, राजमार्ग और सामान्य मार्ग, इन सभी की सफाई कराओ, वहाँ पर जल का छिड़काव कराओ, गोबर आदि का लेप कराओ। नगरी की गलियों के मध्य भागों एवं बाजार के रास्तों की भी सफाई कराओ, जल का छिड़काव कराओ और उन्हें स्वच्छ कराओ। सीढ़ियों के आकार के प्रेक्षकासनों की रचना कराओ। भिन्न-भिन्न रंगों की, ऊंची, सिंह, चक्र आदि चिन्हों से युक्त ध्वजाएँ, पताकाएँ और अतिपताकाएँ-जिनके आसपास ऐनेकानेक छोटी-छोटी पताकाओं-झंडियों से सजे हों, ऐसी बड़ीबड़ीप ताकाएँ लगवाओ। नगरी की दीवारों को लिपवाओ पुतवाओ। उन दीवारों पर गोरोचन तथा सरस-आर्द्र लाल' चन्दन...यावत् आदि जिससे सुगन्धित धुएं के प्रचुरता से वहाँ पर गोल-गोल धूममय छल्लें
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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