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उववाइय सुत्तं सू० २९
प्रवृत्ति निवेदक को जब यह ( श्रमण भगवान् महावीर के आगमन की ) बात विदित हुई, वह हषित एवं संतुष्ट हुआ।... यावत् विकसित हृदय हुआ। उसने स्नान किया ।...यावत् संख्या में कम, पर मूल्यवान् आभूषणों से शरीर को अलंकृत किया। यों वह सज-धजकर अपने घर से निकला। अपने घर से निकल कर चम्पा नगरी के बीचों-बीच-- मध्य बाजार से होता हुआ, जहाँ राजा कुणिक का महल था, जहाँ बहिर्वर्ती राजसभा थी...( इसके बाद का सभी वर्णन-जो कि पहले कहा जा चुका है यहाँ तक कहना चाहिये कि राजा कूणिक प्रभु महावीर को वन्दन-नमन कर सिंहासन पर ) बैठा। वैसा कर--बैठ कर उस वार्ता-निवेदक को साढ़े बारह लाख रजत-मुद्राएँ प्रीतिदानपारितोषिक या तुष्टिदान के रूप में प्रदान की। प्रदान कर, उन्होंने उत्तम वस्त्र आदि द्वारा उसका ( वार्ता निवेदक का ) सत्कार किया, आदर-पूर्ण वचनों द्वारा सम्मान किया, इस प्रकार सत्कृत एवं सम्मानित कर उसे विसर्जित--विदा किया ॥२८॥
Then the aforesaid Intelligence Officer, having learnt all this, was highly delighted, till his heart expanded in glee. He took his bath, till decorated himself with ornaments light in weight but precious in value, and moved out of his residence. Then moving through the heart of the city of Campā, he arrived in the audience-room of king Kūņika, till the king having transmitted his homage and obeisance to Bhagavān Mahāvira, sat on his throne. Having sat on his throne, the king conferred 'on the Intelligence Officer a cash award of 12.50 lakhs and honoured him duly. Having done so, he dismissed him. 28
कूणिक राजा का आदेश
King Kūņika issues instructions
तए णं से कूणिए राया भंभसारपुत्ते बलवाउअं आमंतेइ । आमतत्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिआ ! आभिसेक्कं