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Uvavaiya Suttam Su. 28
उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेंति । करिता वंदति णमंसंति । वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासणे णाइदूरे सुस्सुसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ॥२७॥
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वहाँ आकर श्रमण भगवान् महावीर की तीन बार आदक्षिणा- प्रदक्षिणा की, वैसा कर वन्दन - नमस्कार किया । वन्दन- नमस्कार कर श्रमण भगवान् महावीर के न अधिक दूर न अधिक समीप अवस्थित हो, शुश्रूषा - भगवान् के वचन श्रवण करने की उत्कण्ठा लिये, नमस्कार मुद्रा में ( श्रमण भगवान् महावीर के ) सम्मुख विनयपूर्वक अंजलि बाँधे हुए - दोनों हाथ जोड़े हुए उनकी पर्युपासना - सान्निध्य लाभ लेने लगे ||२७||
Having arrived there, they moved round him thrice, paid their homage and obeisance. Having done so, they stood in front of him folding their hands in humility, neither very near nor very far, fully attentive, worshipping him with devotion. 27
Safe को भगवद्चर्या का निवेदन
The Intelligence Officer submits
जाव...
तणं से पवित्तिवाउए इमीसे कहाए लद्धट्ट समाणे हट्टतुट्ट .. हियए । हाए जाव ... अप्पमहग्घाभरणालंकि असरीरे सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमइ । सयाओ गिहाओ पडिणिक्खमित्ता चंपाणयरि मज्भंमज्झणं जेणेव बाहिरिया सव्वेव हेट्ठिल्ला वत्तव्वयाजाव... णिसीयइ णिसीइत्ता तस्स पवित्तिवाउअस्स अद्धतेरससयसहस्साइं पीइदाणं दलयति । दलयित्ता सक्कारेइ सम्माणेइ 1 सक्कारेत्ता सम्मात्तापडिविसज्जे ||२८||