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Uvavaiya Suttam Suū. 27
इस प्रकार विचार करके उन्होंने स्नान किया । नैमित्तिक कार्य किये, शरीर-सज्जा की दृष्टि से आँखों में अंजन आंजा । ललाट पर मंगल स्वरूप तिलक किया । प्रायश्चित - दुःस्वप्न आदि दोषों के निवारण हेतु चन्दन, कुंकुम, अक्षत, दधि आदि से मंगल-विधान किया। उन्होंने सिर पर एवं गले में मालाएँ धारण कीं । मणि-सुवर्ण जड़ित आभरण, हार, अर्धहार, तीन लड़ों के हार, प्रलम्ब हार, लटकती हुई करधनियाँ और अन्य भी शोभावर्धक अलंकारों से अपने आपको सजाया ; उत्तम, श्रेष्ठ मांगलिक वस्त्र पहनें। उन्होंने समुच्चय रूप में शरीर पर और शरीर के प्रत्येक अवयव पर चन्दन का लेप किया ।
Having thought like this, people took their bath, performed necessary propitiatory and conciliatory rites, made atonements to make their journey free from danger and put on beautiful dresses. They decorated their heads and necks with beautiful garlands. They decorated themselves with golden ornaments beset with gems. They placed round their neck necklaces, half-necklaces (ardhahāras), necklaces with three strings, decorated their waists with kațisūtras and placed other decorative ornaments on their person. They besmeared their limbs with sandal paste.
अप्पेगइआ हयगया एवं गयगया रहगया सिवियागया संदमाणियागया अप्पेगइआ पार्याविहारचारिणो पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता महया उक्किट्ठि-सीहणायबोलकलकलरवेणं पक्खुब्भिअमहासमुद्दरवभूतंपिव करेमाणा चंपाए णयरीए मज्भंमज्झणं णिगच्छंति णिगच्छित्ता जेणेव पुण्णभद्दे चेइए तेणेव उवागच्छति ।
उनमें से कई एक घोड़ों पर कई हाथियों पर कई पर्देदार पालखियों पर, कई पुरुष -प्रमाण पालखियों पर सवार हुए। कई जन बहुत पुरूषों के द्वारा चारों ओर से घिरे हुए पैदल ही चल पड़े । वे सभी लोग उत्कृष्ट, हर्षोल्लसित, सुन्दर और सिंहनाद द्वारा यां कल-कल