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Uvavāiya Suttaṁ Sū. 26
वे देव जिन-राग-द्वेष के विजेता तीर्थ कर प्रभु महावीर के दर्शन पाने की उत्सुकता और तदर्थ अपने वहाँ पहुँचने से उत्पन्न हुए हर्ष से उल्लसित थे। जिनेश्वर का वन्दन-स्तवन करने वाले वे ( बारह देवलोकों के दस अधिपति ) देव पालक, पुष्पक, सौमनस, श्रीवत्स, नन्द्यावर्त, कामगम, प्रीतिगम, मनोगम, विमल और सर्वतोभद्र नाम के अपने-अपने विमानों से भूमि पर अवतीर्ण-उतर आये। वे इन्द्र मृग-हरिण, महिष-भैंसा, वराह -सूअर, छगल-बकरा, दर्दुर-मेंढक, हय-घोड़ा, गजपति-उत्तम हाथी, भुजंग--सर्प, खड़ग--गैंडा और वृषभ--सांड, के चिन्हों से अंकित मुकुट को धारण किये हुए थे। वे उत्तम मुकुट ढीले बन्धनवाले, उनके सुन्दर सविन्यास युक्त मस्तकों पर विद्यमान-दीप्तिमान् थे। कुण्डलों की उज्ज्वल प्रभा से उनके मुख देदीप्यमान--उद्योतित थे। मुकुटों से उनके मस्तक सुशोभित--दीप्तिमान् थे। वे लाल आभा--लालिमा लिए हुए, कमल गर्भ के समान गौर कान्तिमय श्वेत वर्ण से युक्त थे। वे उत्तम उत्तर वैक्रिय के द्वारा शुभ वर्ण, शुभ गन्ध और शुभ स्पर्श के निष्पादन में सक्षम थे। वे भिन्न-भिन्न प्रकार के वस्त्र, - सुगन्धित द्रव्य, और मालाएँ धारण किये हुए थे। वे परम ऋद्धि से सम्पन्न तथा अत्यन्त द्युतिमान् थे। पूर्व समागत देवों की तरह शेष वर्णन, यहाँ तक, वे भगवान् महावीर के सामने विनयपूर्वक अंजलि बाँधे--हाथ जोड़े, उनकी पर्युपासना-अभ्यर्थना या उनका सान्निध्य लाभ लेने लगे ॥२६॥
They were full of joy because they were keen to pay their homage to the Jina and they had been able to come. They descended on this earth from various vimānas, such as, Pālaka, Puşpaka, Somanasa, Srivatsa, Nandyāvarta, Kāmagama, Prītigama, Manogama, Vimala and Sarvatobhadra. They wore on their crown their respective emblems, such as, deer, buffalo, pig, goat, frog, horse, pedigree elephant, snake, rhino and ox. The crowns were loosely placed. Their faces were beaming in the glitter of their ear-rings. So did their crest in the glitter of their crown. They were red in their pigmentation, or yellow like the central piece of lotus, or simply white. They had great power to transform themselves. They had put on