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Uvavaiya Suttam Su. 25
य णक्खत्तदेवगणा । णाणासंठाण - संठियाओ पंच-वण्णाओ ताराओ । ठिअलेस्सा चारिणो अ अविस्साम-मंडल - गती । पत्तेयं णामंकपागडिय - चिंध-मउडा | महिड्डिया जाव... पज्जुवासंति ॥ २५ ॥
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उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी) उस समय ( चतुर्थ आरे के अन्त ) में श्रमण भगवान् महावीर के समक्ष बृहस्पति, चन्द्र, सूर्य, शुक्रं शनैश्चर, राहू, धूमकेतु, बुध और मंगल, जिनका वर्ण तपे हुए स्वर्ण-बिन्दु के सदृश देदीप्यमान् था - ये ज्योतिष्क देव प्रादुर्भूत- - प्रगट हुए । इन देवों के अतिरिक्त ज्योतिश्चक्र में भ्रमण करने वाले - - गतिशील, गति में आनन्द अनुभव करने वाले, केतु — जलकेतु आदि ग्रह, अट्ठाईस प्रकार के नक्षत्र देवगण, भिन्न-भिन्न आकृतियों के पाँच वर्ण के तारे-तारा जाति के देव प्रादुर्भूत - प्रकट हुए। उनमें स्थित रह कर प्रकाश करने वाले, अनवरत मण्डलाकार गति से चलने वाले, दोनों प्रकार के ज्योतिष्क देव थे । प्रत्येक - हर किसी ने अपने-अपने नाम से अंकित अपना विशिष्ट चिन्ह अपने मुकुट पर धारण कर रखा था । वे अत्यन्त ऋद्धिशाली पूर्व समागत देवों के सदृश यथाविधि वन्दना - नमस्कार करके श्रमण भगवान् महावीर की पर्युपासना – अभ्यर्थना करने लगे ॥२५॥
In that period, at that time, the Jyotiska gods descended to wait upon Bhagavān Mahāvira. They were : Jupiter, Moon, Sun, Venus, Saturn, Rāhu, Comets, Mars and Mangala which were as red as a drop of molten gold. These heavenly bodies which usually move on their orbit came down to Bhagavan Mahāvīra. There came down the mobile Ketu, twentyeight types of Nakṣatras of diverse shape and stars of five hues. There came down some heavenly bodies which shine from a fixed position, and others which shine as they move. Each one wore a crown with the distinguishing emblem of his own vimana and its name printed on it. They had immense grace, immense fortune, till were worshipping him. 25