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उववाइय सुत्तं सू० २४ मगर, और वर्द्धमानक-शराब सिकोरा, तरह-तरह के चिह्न से अंकित थे। वे सुन्दर रूप युक्त, अत्यन्त ऋद्धिशाली शेष वर्णन असुरकुमार देवों के समान है यहां तक, उनकी पर्युपासना-अभ्यर्थना करने लगे ॥२३॥
In that period, at that time, leaving aside the Indras of the Asuras, many other denizen gods of the bhavanas, such as,. Nagakumāras, Suvarnakumāras, Vidyutkumāras, Agnikumāras, Dvipakumāras, Udadhikumāras, Diśākumāras, Pavapakumāras and Stanitakumāras, descended to wait upon Bhagavān Mahāvīra. They wore different marks, such as, the hood of a. snake, garuda, thunderbolt, auspicious pitcher, lion, horse, elephant, crocodile and vardhamānaka (wine-cup) printed on their crown depending on their place of residence. They had great. grace, great fortune, till were worshipping him. 23
वाणव्यन्तर देवों का अवतरण
: The Descent of Vāņavyantara Gods तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बहवे वाणमंतरा देवा अंति पाउन्भवित्था । पिसाया भूआ य जक्ख रक्खस किंनर किंपुरिस भुअगवइणो अ महाकाया गंधव्वणिकायगणा णिउणगंधव्वगोतरइणो अणपण्णिअ पणपण्णिअ इसिवादीअ भूअवादीअ कंदिअ महाकदिआ य कुहंड पयए य देवा ।
___ उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे के अन्त ) में श्रमण भगवान् महावीर के समीप में पिशाच, भूत, यक्ष, राक्षस, किन्नर, किंपुरुष, महाकाय भुजगपति, गन्धर्व-नाट्योपेत गान, गीत-नाट्यवर्जित संगीत में अनुरक्त गन्धर्वगण, अणपन्निक, पणपन्निक. ऋषिवादिक, भूतवादिक, ऋन्दित, महाक्रन्दित, कुष्मांड, पतग या प्रयत-बहुत से ये वाणव्यन्तर जाति. के देव प्रादुर्भूत-प्रकट हुए।