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Uvavāiya Suttam Su. 23
रहकर सुनने की इच्छा रखते हुए, प्रणाम करते हुए - भगवान् की ओर सन्मुख रहकर विनयपूर्वक - - हाथ जोड़े हुए करने लगे ॥२२॥
पर्युपासना - अभ्यर्थना
With divine colour, divine smell, divine shape, divine touch, divine body frame, divine structure, divine fortune, divine glow, divine radiance, divine grace, divine decorations, divine brilliance and divine tinge, brightening and beautifying all the directions, they came down to Sramana Bhagavan Mahāvira and moved round him with great devotion. Then they paid their homage and obeisance to him, and having done so, they took their seat neither very near nor very far, with their faces turned towards him, with folded palms. 22
भवनवासी देवों का अवतरण
The Descent of Bhavanavasi Gods
तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स बह असुरिंदवज्जिआ भवणवासी देवा अंतियं प्राउन्भवित्था । णागपइणो सुवण्णा विज्जू अग्गीआ दीवा उदही दिसाकुमारा य पवण थणिआ य भवणवासी । णागफडा - गरुल-वयर - पुण्ण कलस - पीह - हय-गय-मगर-मउडवद्धमाण- णिजुत्त-विचित्त-चित्रगया सुरूवा महिड्डिया सेसं तं चैव जाव ...पज्जुवासंति ।।२३।।
उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे के अन्त म ) श्रमण भगवान् महावीर के पास बहुत से असुर कुमारों को छोड़कर नागकुमार, सुवर्णकुमार, विद्युत्कुमार, अग्निकुमार, द्वीपकुमार, उदधिकुमार, दिशाकुमार, पवनकुमार और स्तनितकुमार जाति के भवनवासी - पाताललोक में स्थित अपने आवासों में निवास करने वाले देव प्रादुर्भूत - प्रगट हुए । उनके मुकुट क्रमशः नागफण, गरुड़, वज्र, पूर्ण कलश, सिंह, अश्व, हाथी,