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उववाइय सुत्तं सू० २२.
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Their crowns bore the mark of hood-stone (cūdāmani). They had grace, great fortune, great glow, great valour, great friendship and great power. Their chests were decorated with necklaces. Their arms became stiff like pillars because of the weight of ornaments. They wore bracelets and earrings. They painted their cheeks with musk. Their robes and ornaments were uncommon. On their crests, there was a crown bedecked with sundry garlands. They were laden with auspicious flowers and pastes. On their body dangled garlands made from flowers of all seasons. These touched the knee.
दिव्वेणं वण्णेणं दिव्वेणं · गंधेणं दिव्वेणं रूवेणं दिव्वेणं फासेणं दिव्वेणं संघाएणं दिव्वेणं संठाणेणं दिव्वाए इड्डीए दिव्वाए जुत्तीए दिव्वाए पभाए दिव्वाए छायाए दिव्वाए अच्चीए दिव्वेणं तेएणं दिव्वाए लेसाए दस दिसाओ उज्जोवेमाणा पभासेमाणा समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिअं आग़म्मागम्म रत्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ । करेत्ता वंदंति णमंसंति । वंदित्ता णमंसित्ता णच्चासणे णाइदूरे सुस्सूसमाणा णमंसमाणा अभिमुहा विणएणं पंजलिउडा पज्जुवासंति ।।२२॥
उन्होंने देवोचित दिव्य वर्ण, दिव्य गन्ध, दिव्य रूप, दिव्य स्पर्श, दिव्य संघात-शारीरिक गठन, दिव्य संस्थान-शारीरिक अवस्थिति, दिव्यऋद्धि-विमान, वस्त्र, आभूषण आदि समृद्धि, दिव्य द्युति-आभा या युक्ति-विवक्षित परिवार आदि योग, दिव्य प्रभा, दिव्य छाया-कान्ति, दिव्य अचि-शरीरस्थ रत्नादि की दीप्ति, दिव्य लेश्या-आत्मपरिणति, तदनुरूप प्रभामण्डल के द्वारा दशों दिशाओं को प्रकाशित एवं प्रभा या शोभायुक्त करते हुए श्रमण भगवान् महावीर के समीप में आ-आकर अनुरागपूर्वक तीन बार आदक्षिणा-प्रदक्षिणा की, वन्दन-नमन किया, वन्दन नमन करके या वैसा कर अपने-अपने नामों एवं गोत्रों का उच्चारण करते हुए, वे श्रमण भगवान् महावीर के न अधिक समीप, न अधिक दूर स्थिर