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________________ 118 'Uvavaiya Suttam Si 22 में अवस्थित थे-विद्यमान थे। उनकी भुजाएँ मणिरत्नों से बने हुए अति श्रेष्ठ तलभंगकों-बाहुओं के आभरणों, बाहु-रक्षिकाओं, अन्यान्य श्रेष्ठ आभूषणों, उज्ज्वल रत्नों और मणियों से सुशोभित थीं। उनके दोनों हाथों की दशों अंगुलियाँ अंगुठियों से अलंकृत थीं। They had crossed through their childhood days but had not attained full youth. They were in the prime of their youth. Their arms were decorated with talabhangaka, truţikā and other beautiful ornaments. All the ten fingers had rings on. . - चूलामणि - चिंधगया सुरूवा महिड्डिआ महज्जुतिआ महबला महायसा महासोक्खा महाणुभागा हार-विराइत-वच्छा-कडग-तुडिअयाभअ-भुआ अंगय-कुंडल-मट्ठ-गंडतल-कण्ण-पीढ-धारी विचित्त-वत्थाभरणा विचित्त-माला-मउलि-मउडा कल्लाण-कय-पवर-वत्थ-परिहिया कल्लाण-कय-पवर-मल्लाणुलेवणा भासुरबोंदी पलंब-वणमालधरा । उनके मुकुटों पर चूड़ामणि के रूप में विशेष चिन्ह था। वे सुन्दर रूप युक्त, परम ऋद्धिशाली, महान् द्युतिमान्, परम बलशाली, महान् यशस्वी, अत्यन्त सुखी और अचिन्त्य शक्ति से सम्पन्न थे। उनके वक्षः-स्थलों पर हार सुशोभित हो रहे थे, वे अपनी भुजाओं पर कंकण एवं भुजाओं को सुस्थिर बनाये रखने वाली बाहुरक्षिकाओं-आभरणात्मक पट्टियाँ और अंगद-भुजबन्ध धारण किए हुए थे। उनके केसर, कस्तूरी आदि से चित्रित कपोलों पर कुण्डल तथा अन्यान्य कर्णपीठ-कान के आभूषण अलंकृत थे। वे विशिष्ट अथवा अनेक प्रकार के हाथों के आभूषण धारण किये हुए थे। उनके मस्तकों पर तरह-तरह की पुष्प-मालाओं से युक्त मुकुट थे। वे कल्याणकारी-मंगलस्वरूप, अखण्डित, श्रेष्ठ पोशाक धारण-पहने हुए थे। वे मंगलमय, श्रेष्ठ मालाओं तथा चन्दन, केसर आदि के विलेपन से युक्त थे। उन सभी के शरीर देदीप्यमान थे। सभी ऋतुओं में विकसित होने वाले पुष्पों से बनी हुई मालाएँ ( वनमालाएं ) उनके गलों से घुटनों तक लटक रही थीं।
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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