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उववाइय सुत्तं सू० २२..
117 सदृश श्वेत थीं, उनकी हथेलियाँ, पैरों के तलवें, तालु एवं जिह्वा-जीभ अग्नि में उष्ण किये हुए, धोये हुए, पुनः तपाये हुए, शोधित किये हुए निर्मल स्वर्ण के सदृश लालिमा लिये हुए थे। उनके केश काजल तथा मेघ के समान काले एवं रुचक मणि के सदश रमणीय और स्निग्ध-चिकने, मुलायम थे। उनके बायें कानों में एक-एक कुण्डल' था। ( दाहिने कानों में अन्य आभूषण थे।) उनके शरीर आद्र-घिसकर पीठी बनाये हुए चन्दन से लिप्त थे।
The rows of their teeth were faultless, like a portion of the moon, white like a clean conch, cow's milk, foam or a lotus stalk. The palms of their hands and the sole of their feet, the upper portion of their mouth and tongue were red like burnt gold. Their hairs were as black as the collyrium, or a dark cloud, or like the rucaka stone, delightful and polished. Their left ears had a ring. Their body had a coat of sandal paste.
ईसि-सिलिंध-पुप्फ-प्पगासाइं सुहुमाइं असंकिलिट्ठाई वत्थाई पवरपरिहिया ।
उन्होंने सिलीध्रपुष्प जैसे कुछ-कुछ सफेद या लालिमा लिये हुए श्वेत, सूक्ष्म-महीन, निर्दोष वस्त्रों को सुन्दर रूप में पहन रखे थे।
They nicely wore robes bright like the silidhra flower, fine and free, from dirt.
वयं च पढमं समतिक्कंता बितिसं च वयं असंपत्ता भद्दे जोवणे वट्टमाणा । तलभंगय-तुडीअ-पवर-भूसण-निम्मल-मणि-रयणमंडिअ-भुआ दस-मुद्दा-मंडिअग्ग-हत्था ।
वे प्रथम वय-बाल्यावस्था को पार कर चुके थे, द्वितीय वय-मध्यम वय-युवावस्था को नहीं प्राप्त किये हुए थे। भद्र यौवन-किशोरावस्था