________________
116
Uvavaiya Suttam Si. 22
णील-गुलिअ-गवल-अयसि-कुसुमप्पगासा विअसिअ-सयवत्तमिव पत्तलनिम्मल-ईसि-सितरत्त-तंबणयणा गरुलायत-उज्जु-तुग-णासा उअचिअसिल-प्पवाल-बिंबफल-सण्णिभाहरोहा ।
___ उस काल ( वर्तमान अवसर्पिणी ) उस समय ( चतुर्थ आरे के अन्त ) में श्रमण भगवान् महावीर के समीप बहुत से असुर कुमार देव प्रकट हुए थे। उनका वर्ण काले महानील मणि के समान था और नीलमणि, नील की गुटिका, भैंसे के सींग तथा अलसी के फूल के समान उनकी दीप्ति थी। उनके नेत्र खिले हुए शतपत्र कमल के सदश थे, नेत्रों की भौंहें सूक्ष्म रोममय निर्मल थीं, उनके नेत्रों का वर्ण कुछ-कुछ सफेद, लाल एवं ताम्र के सदृश था। उनकी नासिकाएँ गरूड़ की नाक की तरह लम्बी, सीधी एवं ऊँची थी। उनके ओष्ठ-होठ परिपुष्ट शिला-प्रवाल--मूंगे तथा बिम्बफल के समान लाल थे। . ..
In that period, at that time, many Asurakumāra gods came down to Bhagavān Mahāvira. They had a black complexion like the colour of mahānila stone and the glaze of nīlamani stone, indigo, the horn of a buffalo and the alasi flower. Their eyes were open like a blossomed lotus, with polished brows, somewhat white, red and copper-like. Their noses were sharp like that of Garuda, straight and high. Their lips were red like a refined coral or the bimba fruit...
पंडुर-ससि-सकल-विमल - णिम्मल - संख गोक्खीर-फेण-दगरय - मुणालिया-धवल-दंत - सेढी हुयवह - णिद्धंत-धोय-तत्त-तवणिज्ज-रत्ततल-तालु-जीहा अंजण - घण-कसिण-रुयग-रमणिज्ज-णिद्धकेसा वामेगकुंडलधरा अद्दचंदणाणुलित्तगत्ता ।
उनकी दन्तपंक्तियां स्वच्छ-निष्कलंक, चन्द्रमा के टुकड़ों के समान उज्ज्वल एवं निर्मल, शंख, गाय के दूध के झाग, जलकण तथा कमलनाल के