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________________ 114 Uvavaiya Suttam Su. 21 limitless and terrific. The monks in the order of Mahāvīra were quickly crossing through this terrific ocean with the help of a boat which is restraint and was held fast by a rope called patience. It is fitted with masts which are the checking of karma inflow and total detachment. Its sail is a pure white cloth which is knowledge. Pure equanimity is its (unfailing) boatman. पसत्थ-ज्झाण-तव-वाय-पणोल्लिअ-पहाविएणं उज्जम-ववसायगहिय-णिज्जरण-जयण-उवओग-णाण-दंसण-विसुद्ध-वय-भंड - भरिअसारा जिणवर-बयणोवदिट्ठ-मग्गेणं अकुडिलेण सिद्धि-महापट्टणाभिमुहा समण-वर-सत्थवाहा सुसुइ-सुसंभास-सुपण्ह-सासा गामे गामे एगरायं णगरे णगरे पंचरायं दूइज्जता जिइंदिया णिब्भया गयभया सचित्ताचित्त-मीसिएसु दव्वेसु विरागयं गया संजया विरया मुत्ता लहुआ णिरवकंखा साहू णिहुआ चरंति धम्म ।।२१॥ . वह ( संयम रूप जहाज ) प्रशस्त ध्यान तथा तप रूप वायु की प्रेरणा से अनुप्रेरित होता हुआ शीघ्रतापूर्वक चल रहा था। उसमें उद्यम-अनालस्य, व्यवसाय-वस्तु-निर्णय. या सुप्रयत्नपूर्वक गृहीत निर्जरा, यतना, उपयोग, ज्ञान, दर्शन, ( चारित्र ) तथा विशुद्ध व्रत रूप सार पदार्थ श्रेष्ठ माल ( अनगारों के द्वारा) भरा हुआ था। वीतराग प्रभु के वचनों के द्वारा उपदिष्ट विशुद्ध मार्ग से वे श्रमणश्रेष्ठ रूप सार्थवाह--दूर-दूर तक कुशलतापूर्वक व्यवसाय करने वाले बड़े व्यापारी, सिद्धि रूप महापट्टन-बड़े बन्दरगाह की ओर अभिमुख होकर बढ़े जा रहे थे, अर्थात् वे सीधी गति से संयम रूप , जहाज के द्वारा जा रहे थे। वे अनगार--श्रमण सम्यक् श्रुतसत्सिद्धान्त प्रतिपादक आगमीय ज्ञान, उत्तम संभाषण, सुप्रश्न, सद्भावना समायुक्त अर्थात् उत्तम आकांक्षा वाले थे अथवा वे सम्यक् श्रुत, उत्तम भाषण तथा प्रश्न, प्रतिप्रश्न आदि द्वारा सशिक्षा प्रदान करते थे । वे अनगार-श्रमण ग्रामों में एक-एक रात तथा नगरों में पाँच-पाँच रात तक निवास करते हुए, जितेन्द्रिय--इन्द्रियों को वश किये हुए, निर्भय-- मोहनीय आदि भयोत्पादक कर्मों के उदय को रोकने वाले, भय के उदय को
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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