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________________ उववाइय सुत्तं सू० २१ 111 of karma made of profound infamy, incessant pain from disease, frequent births and deaths, harsh words and scolding. This wordly ocean has the four passions as its base. - भव -सय -सहस्स- कलुस - जल-संचयं पतिभयं अपरिमिअ-महिच्छकलुस -मति - वाउ - वेग - उद्धुम्म माण दगरय-रयंधआर वर फेण-पउरआसा - पिवास-धवलं मोह- महावत्त-भोग भममाण - गुप्पमाणुच्छलंतपच्चोणि यत्त- पाणिय- पमाय चंड - बहुदुट्ठ-सावय- समाह उद्धायमाणपब्भार- घोर-कंदिय - महाररवंत - भेरवरवं । - इस संसार सागर में हजारों-लाखों जन्मों में अर्जित पापमय पानी संचित है । अपरिमित - असीम इच्छाओं से मलिन बनी हुई बुद्धि रूपी वायु के वेग से ऊपर उछलते हुए सघन जलवणों के समूह के कारण आवेग से अन्धकार युक्त तथा आशा - अप्राप्त वस्तुओं के प्राप्त होने की संभावना, पिपासा – अप्राप्त पदार्थों को प्राप्त करने की पुनः पुनः आकांक्षा के द्वारा उलझे हुए धागों की तरह वह धवल है । इस संसार रूप समुद्र में मोह के रूप में बड़े-बड़े आवर्त - जलमय विशाल चक्र हैं। उनमें भोग रूप भंवर—जल के छोटे-छोटे गोलाकार घुमाव उठते हैं । इसलिये दुःख रूप जल चक्र काटता हुआ या भ्रमण करता हुआ, चंचल होता हुआ, ऊपर उछलता हुआ, नीचे गिरता हुआ दिखाई देता है । अपने में स्थित प्रमाद रूप भयानक, अति दुष्ट - हिंसक जल-जन्तुओं से आहत ( घायल ) होंकर ऊपर उछलते हुए, नीच की ओर गिरते हुए, बुरी तरह चीखते-चिल्लाते हुए क्षुद्र जीवों के समूहों से यह ( संसार - समुद्र ) परिव्याप्त हैं । वही मानों (उत्प्रेक्षा अलंकार ) उस का कोलाहलरूप भयावह गर्जन या आघोष है । . The worldly ocean has the accumulation of dirt from hundreds, thousands, even tens of thousands lives and is apparently exceedingly dreadful. It has been made dark by the force of rushing particles of water moving up by the
SR No.002229
Book TitleUvavaia Suttam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Lalwani, Rameshmuni
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year1988
Total Pages358
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_aupapatik
File Size20 MB
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