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उववाइय सुत्तं सू० २० ..
97 (३) स्तंन्यानुबन्धी-चोरी से सम्बन्धित एकाग्र चिन्तन करना, (४) संरक्षणानुबन्धी-धन-वैभव, भोग-साधनों के संरक्षण का एकाग्र चिन्तन करना।
Meditation with a thought of violence has four types, viz., thought linked with violence, thought linked with falsehood, thought linked with committing a theft and thought for protecting ill-gotten treasure.
रुद्दस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता। तं जहा--- उसण्णदोसे बहुदोसे अण्णाणदोसे आमरणंतदोसे ।
रौद्रध्यान के चार लक्षण बतलाये गये हैं, वे इस प्रकार हैं : (१) उत्सन्नदोष-हिंसा, मषा प्रभति दोषों में से किसी एक दोष में विशेष रूप से लीन रहना, उस दोष की ओर प्रवृत्तिशील रहना, (२) बहुदोष--हिंसा, मृषा आदि अनेक दोषों में प्रवृत्त रहना, (३) अज्ञान दोष-मिथ्या शास्त्र के संस्कारवश हिंसा आदि धर्म प्रतिकूल क्रिया-कलापों में धर्माराधना की दृष्टि से संलग्न रहना, उधर प्रवृत्त रहना, (४). आमरणान्त दोष-सेवित दोषों के लिये मृत्यु पर्यन्त भी पश्चात्ताप नहीं करना और उनमें निरन्तर प्रवृत्त रहना।
Meditation with a thought of violence has four expressions, viz., to be immersed deep in one type of fault to be immersed deep in all rypes of fault, to be unconscious about indulgence and to practise bad things till the end of life without remorse.
धम्मज्झाणे चउन्विहे चउप्पडोयारे पण्णत्ते । तं जहा-आणाविजए अवायविजए विवागविजए संठाणविजए।
धर्मध्यान का चार भेद वाला चार प्रकार का स्वरूप बतलाया गया है। स्वरूप की अपेक्षा से धर्म ध्यान के चार भेद इस प्रकार हैं-(१) आज्ञा