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Uvavaiya Suttam Sa.20
दूर करने, दूर होने के सन्दर्भ में निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। (२) मन को प्रिय लगने वाले साधनों-विषयों के प्राप्त होने पर उनके अवियोग-वे सर्वदा अपने साथ रहे, वे अपने से कभी भी दूर, अलग नहीं हों, यों निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। (३) रोग के उत्पन्न हो जाने पर, उनके मिटने के सम्बन्ध में निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना। (४) पूर्व सेवित और प्रीतिकर काम-भोगों की प्राप्ति होने पर, फिर कभी उनका वियोग न हो, यों निरन्तर आकुलतापूर्ण चिन्तन करना।
The meditation of the wretched /distressed has four types, viz., anxious desire to get rid of unwholesome instruments, anxious desire to stick to or hold on wholesome instruments, anxious desire to get rid of terror/ailment and anxious desire to stick to or hold on desired objects.
अट्टस्स णं झाणस्स चत्तारि लक्खणा पण्णत्ता । तं जहा - कंदणया सोअणया तिप्पणया विलवणयां ।
. आर्त ध्यान के 'चार लक्षण बतलाये गये हैं, वह इस प्रकार है: (१) क्रन्दनता-रोना, चीखना, (२) शोचनता-दीनता का अनुभव करना, (३) तेपनता-आँसू ढलकाना, (४) विलपनता-विलाप करना।
Meditation of the wretched/distressed has four expressions, viz., to cry, to feel wretched, to shed tears and to lament.
रुद्दज्झाणे चउन्विहे पण्णत्ते । तं जहा -हिंसाणुबंधी मोसाणुबंधी तेणाणुबंधी सारक्खणाणुबंधी ।
रौद्र ध्यान चार प्रकार का बतलाया गया है, जो इस प्रकार है: (१) हिंसानुबन्धी-हिंसा का अनुबन्ध लिये एकाग्र चिन्तन करना, (२) मृषानुबन्धी-असत्य का अनुबन्ध लिये. एकाग्र चिन्तन करना,