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नवांगी गुरुपूजन की प्रवृत्ति रोकी नहीं थी । इसमें शास्त्राज्ञा का पालन, इसमें होने वाले देवद्रव्य की वृद्धि, गुरुभक्ति से शिष्य का कल्याण, ये बातें महत्त्व की थी ।
प्रह उढीने उपाश्रये आवी, पूजी गुरु नव अगे । वाजित वाजतां मंगल गावती, गेहुली दिये मन रंगे ॥
श्री कल्पसूत्र की ढाल में भी देखो, गुरु की नो अङ्गी पूजा का विधान है।
पू०
आचार्य श्री पादलिप्ताचार्य कृत निर्वाणकलिका में पृष्ट २६ ए पर देवगुरु संघपूजा तथा भगवान की पूजा करके आचार्य की यथाशक्ति पूजा करके - ' ऐसा स्पष्ट उल्लेख है। इसमें
नौ अङ्ग या
एक का उल्लेख भले स्पष्ट नहीं है
परन्तु गुरुपूजा का तो स्पष्ट उल्लेख
है हीं।