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विशेषण-भावा-भावा-नियमो न प्राप्तः, संख्यात्वमपि द्वयोरेवेति विशेपणसर्वादि०' ।३।११५०। इति न प्रवर्तते इत्यानपूादेव पूर्वनिपातः । द्वे शते समाहृते द्विशती । 'संख्या समाहारे० ।३।१।६६। सूत्रात् समाहारे द्विगुसमासः, अन पात्रादिवजिताददन्तोत्तरपदत्वात् स्त्रीत्वं डीश्च । एकश्च दश च=एकादश । 'चार्थे द्वन्द्वः०' ।३।१।१२१। सत्रात्समास:, 'एकादश०' ।३।२।११। सूत्रात्पूर्वपदस्य दीर्घत्वे 'एकादशन्' शब्दस्य प्रथमाबहुवचनस्य रूप-मिदम् । इह संख्यात्वेन लोकप्रसिद्धाया एव संख्याया ग्रहणं न तु संख्यासमुदायस्य तेन द्वौ वा त्रयो वा द्वित्राः । चत्वारश्च द्वित्राश्च चतुर्दिवत्रा इत्यत्र द्वित्रशब्दस्य न पूर्वप्रयोगः ।।१६३।।।
__ "इति ततीयाध्याये प्रथमः पादः समाप्तः" . WHO RESOUBOUT
कोई मर जाय तब आज के समयधर्मो कहते हैं कि-रोना, रोनाही आवे, रोना आवे ही! यानी रोये बिना कैसे चले? तब भगवान का-सर्वज्ञ का धर्म कहता है कि-'सब को मौत निश्चित है, श्रीतीर्य कर देव जैसे भी निर्वाण पाये, रोने से कोई वापिस नहीं आता, रोने से जाने वाला भी यदि वोसिरा कर न गया हो तो उसको भी पाप लगता है, इसीलिये रोना नहीं चाहिये । ज्यादा में प्रभुधर्म के ज्ञाता तो बहुत-बहुत समझाते हैं और कहते हैं कि 'टूटा हुआ आयुष्य जोड़ने की किसी की ताकत नहीं है। श्रीसुधर्मा इन्द्र ने एक क्षण मात्र आयुष्य बढाने का भगवान को कहा, परन्तु भगवान ने कहा कि 'बंधा हुए आयुष्य को घटाने या बढ़ानें को ताकत श्रीतीर्थकरों में भी नहीं है, तो मरने वाले आत्मा के आप हितैषी हो तो शेला छोड़ दो, मरने घाले को जिन्दगी तक तो पाप कराया, उसकी आय ( इन कम) आप सब खा गये और अब तक तो तुम्हारे हित के मार्ग में उसको जोड़ा। तो अब भी यदि तुम उसका भला चाहते हो तो रोना छोड़ दो, तुम रोओगे उसका पाप उसको लगेगा, क्योंकि वह वोसिरा कर नहीं गया, परन्तु 'ओ बापा !! ऐसा पुकार करते हुए गया है।
प०पू० कलिकाल-कल्पतरु आचार्यदेव श्री विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी महाराजा
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