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________________ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन १५४ १५५ १५५ १५६ विषय आगम प्रमाण का लक्षण वेदापौरुषेयत्व विचार शब्दनित्यत्व विचार शब्दार्थसम्बन्ध विचार अन्यापोहवाद स्फोटवाद पद-वाक्यस्वरूप विचार . चतुर्थ परिच्छेद प्रमाण का विषय सामान्य के भेद तिर्यक् सामान्य का स्वरूप । ऊर्ध्वता सामान्य का स्वरूप बौद्धदर्शन में सामान्य का स्वरूप न्याय-वैशेषिक दर्शन में सामान्य का स्वरूप ब्राह्मणत्वजाति निरास क्षणभंगवाद सम्बन्धसद्भाववाद पर्याय विशेष का स्वरूप व्यतिरेक विशेष का स्वरूप अर्थ में सामान्य-विशेषात्मकत्व की सिद्धि अनेकान्तवाद में संशयादि आठ दोषों का निराकरण । यौगाभिमत अवयवी का निरास बौद्धाभिमत अवयवी का निरास वैशेषिकाभिधान षट्पदार्थवाद परमाणुरूप नित्यद्रव्य विचार आकाशद्रव्य विचार कालद्रव्य विचार दिग्द्रव्य विचार १५७ 9 २ १६५ १६८ १७१ १७४ १७६ १७९ १८१ १८२ .१८३ १८४ १८७
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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