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प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
एक बार करपात्र में आहार ग्रहण करती हैं तथा अपने हाथों से केशलुञ्चन. करती हैं। वे एक बार में मात्र एक वस्त्र ( साड़ी ) धारण करती हैं । अत: उनका संयम सचेल संयम कहलाता है।
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४४. नोकर्माहार – औदारिक आदि तीन शरीर और आहार, इन्द्रिय आदि छह पर्याप्तियों के योग्य पुद्गल - परमाणुओं के ग्रहण करने का नाम नोकर्माहार है ।
४५. कर्माहार—ज्ञानावरणादि आठ कर्मों की पुद्गलरूप कार्मण वर्गणाओं के ग्रहण करने को कर्माहार कहते हैं ।
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४६. कवलाहार—कवल ग्रास को कहते हैं । कवलाहार का अर्थ हैग्रासरूप आहार । मूलाचारवृत्ति में बतलाया गया है कि एक हजार चावल प्रमाण एक कवल होता है । यह तो हुई कवलाहार की सामान्य परिभाषा । किन्तु खाद्य, स्वाद्य, लेह्य और पेय- ये सभी आहार कवलाहार के अन्तर्गत माने गये हैं ।
४७. लेपाहार - शरीर में तेल आदि की मालिश करना, उबटन लगाना, भभूत लगाना, दवा या मलहम लगाना, इत्यादि सब प्रकार का लेप लेपाहार है ।
४८. ओजाहार - धूप में बैठकर सूर्य की किरणों को ग्रहण करना, अग्नि के सामने बैठकर तापना, हीटर द्वारा ऊष्मा को ग्रहण करना इत्यादि ओजाहार कहलाता है । इसको ऊष्माहार भी कहते हैं । पक्षी अण्डों को सेते हैं । इससे अण्डों को ऊष्मा मिलती है । यह भी एक प्रकार का ओजाहार है ।
४९. मानसिक आहार – देवगति में उत्पन्न देवों के आहार का नाम मानसिक आहार है । देवों को आहार की इच्छा होते ही मानसिक तृप्ति हो जाती है । अतः देवों का आहार मानसिक आहार कहलाता है ।
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५०. सचेल संयम —चेल वस्त्र को कहते हैं । अतः वस्त्रधारियों के जो संयम होता है वह सचेल संयम कहलाता है । केवल लगोटी धारी का संयम भी सचेल संयम ही है ।
५१. अचेल संयम - सम्पूर्ण वस्त्रादि का त्याग करने वाले दिगम्बर ( नग्न ) साधु का संयम अचेल संयम कहलाता है ।