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षष्ठ परिच्छेद : सूत्र ४२-४६
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अनुमान इस प्रकार है-शब्द अपौरुषेय है, अमूर्त होने से । व्यतिरेक दृष्टान्त में साध्य के अभाव में साधन का अभाव बतलाया जाता है । जैसे जहाँ अपौरुषेयत्व नहीं है वहाँ अमूर्तत्व भी नहीं होता है, जैसे परमाणु । यहाँ परमाणु का दृष्टान्त असिद्धसाध्यव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है । क्योंकि परमाणु अपौरुषेय है । परमाणु में अपौरुषेयत्व साध्य का व्यतिरेक ( अभाव ) न होकर अपौरुषेयत्व का सद्भाव है । इसलिए यह असिद्धसाध्यव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है । ___ इन्द्रिय सुख का दृष्टान्त असिद्धसाधनव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है । क्योंकि इन्द्रियसुख मूर्त न होकर अमूर्त है । इसमें अमूर्तत्व साधन का व्यतिरेक नहीं है । इसलिए यह असिद्धसाधनव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है । इसी प्रकार आकाश का दृष्टान्त असिद्धोभयव्यतिरेक दृष्टान्ताभास है । क्योंकि आकाश अपौरुषेय और अमूर्त दोनों है । उसमें न तो साध्य का व्यतिरेक है और न साधन का व्यतिरेक है । इसलिए यह असिद्धोभयव्यतिरेक दृष्टान्ताभास
___ व्यतिरेकदृष्टान्त में साध्य के अभाव में साधन का अभाव बतलाया जाता है । इससे विपरीत कथन करना अर्थात् साधन के अभाव में साध्य का अभाव बतलाना भी विपरीतध्यतिरेक नामक दृष्टान्ताभास होता है । इसी बात को बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं
विपरीतव्यतिरेकश्च यन्नामूर्तं तन्नापौरुषेयम् ॥४५॥
ऐसा कहना कि. जो अमूर्त नहीं है वह अपौरुषेय नहीं होता है, विपरीतव्यतिरेक नामक दृष्टान्ताभास है । यहाँ ऐसा व्यतिरेक बतलाना चाहिए था कि जो अपौरुषेय नहीं है वह अमूर्त नहीं होता है । परन्तु ऐसा न बतलाकर 'जो अमूर्त नहीं है वह अपौरुषेय नहीं होता है', ऐसा विपरीत व्यतिरेक बतलाया गया है । इसलिए यह विपरीतव्यतिरेक नामक दृष्टान्ताभास है । यहाँ भी विद्युत् के द्वारा अतिप्रसंग दोष आता है । क्योंकि विद्युत् मूर्त होकर भी अपौरुषेय है ।
बालप्रयोगाभास का स्वरूप बालप्रयोगाभासाः पञ्चावयवेषु कियद्धीनता ॥४६॥ अनुमान के प्रतिज्ञा, हेतु, उदाहरण, उपनय और निगमन इन पाँच