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________________ चतुर्थ परिच्छेद : सूत्र ९ १८५ I आश्रित होते हैं । शब्दों में भी उत्पत्तिमत्त्व और विनाशित्व धर्म पाये जाते हैं । इसलिए वे भी किसी के आश्रित होते हैं । गुण होने के कारण भी शब्द किसी के आश्रित होते हैं, जैसे रूपादि गुण घटादि के आश्रित होते हैं । शब्द में गुणत्व असिद्ध नहीं है । क्योंकि शब्द न तो द्रव्य है और न कर्म है, परन्तु इसमें सत्तासामान्य का सम्बन्ध पाया जाता है । जो द्रव्य और कर्म से भिन्न होकर सत् होता है वह गुण होता है, जैसे रूपादि गुण । इस प्रकार यह सिद्ध होता है कि शब्द गुण है । जब शब्द गुण है तो उसका कोई न कोई आश्रय अवश्य होना चाहिए । अब यह विचार करना है कि शब्द गुण का आश्रय क्या है ? शब्द न तो परमाणुओं का विशेष गुण है और न पृथिवी आदि कार्यद्रव्यों का विशेष गुण है । वह आत्मा, काल, दिशा और मन का भी विशेष गुण नहीं हो सकता है । अतः पारिशेष्यन्याय से शब्द आकाश का ही विशेषगुण सिद्ध होता है । इस कथन का तात्पर्य यही है कि शब्द गुण का जो आश्रय होता है वही आकाश है । वह आकाश व्यापक है । क्योंकि उसका गुण शब्द सर्वत्र पाया जाता है । शब्द गुण का आश्रयभूत आकाश द्रव्य व्यापक होने के साथ ही एक, नित्य और निरंश भी है । इस प्रकार वैशेषिकों ने एक स्वतंत्र आकाश द्रव्य की सिद्धि की है । उत्तरपक्ष वैशेषिकों ने शब्द को गुण मानकर यह सिद्ध किया है कि शब्द गुण का कोई आश्रय होना चाहिए । यहाँ हम वैशेषिकों से यह पूछना चाहते हैं कि आप शब्दों का कोई सामान्य आश्रय सिद्ध करना चाहते हैं अथवा नित्य, एक, अमूर्त और विभु द्रव्य को शब्दों का आश्रय बतलाना चाहते हैं। यदि आप शब्दों का कोई सामान्य आश्रय सिद्ध करना चाहते हैं तो यह पक्ष हमारे अनुकूल ही है । क्योंकि हम शब्दों को पुद्गल द्रव्य का कार्य या पर्याय होने के कारण पुद्गल के आश्रित मानते ही हैं । शब्दों को नित्य, एक, अमूर्त और विभु द्रव्य आकाश के आश्रित मानना तो किसी भी प्रमाण से सिद्ध नहीं होता है । शब्द को गुण मानना भी गलत है । शब्द पुद्गल द्रव्य की पर्याय होने से पुद्गल द्रव्यरूप ही है, गुणरूप नहीं । शब्द में स्पर्शादि गुण भी पाये जाते हैं । किन्तु गुणों में गुण तो रहते नहीं हैं । इसलिए भी हम कह सकते हैं कि शब्द गुण नहीं है ।
SR No.002226
Book TitlePrameykamalmarttand Parishilan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorUdaychandra Jain
PublisherPrachya Shraman Bharati
Publication Year1998
Total Pages340
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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