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तृतीय परिच्छेद : सूत्र १२-१४
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किन्तु व्याप्ति- का ग्रहण न तो प्रत्यक्ष से होता है और न अनुमान से 1 साध्य - साधन में व्याप्ति का ज्ञान सार्वदेशिक और सार्वकालिक होता है । प्रत्यक्ष निकटवर्ती और वर्तमान वस्तु को ही विषय करता है । तब उसके द्वारा सार्वदेशिक और सार्वकालिक व्याप्ति का ज्ञान कैसे संभव है । निर्विकल्पक प्रत्यक्ष अविचारक होने के कारण भी सकल धूम और सकल अग्नि के विषय में विचार, (निश्चय ) नहीं कर सकता है । अनुमान से भी व्याप्ति का ग्रहण संभव नहीं है । क्योंकि अनुमान व्याप्तिग्रहणपूर्वक होता है । तब जिस अनुमान से व्याप्तिग्रहण करेंगे उस अनुमान में भी व्याप्तिग्रहण अन्य अनुमान से होगा । इस प्रकार अनवस्था दोष का प्रसंग प्राप्त होता है । अतः प्रत्यक्ष और अनुमान से व्याप्तिग्रहण न हो सकने के कारण ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि तर्क गृहीतग्राही होने से अप्रमाण है । तर्क के विषय में कोई विसंवाद भी नहीं होता है । साध्य-साधन में जो अविनाभाव सम्बन्ध है वह तर्क का विषय है। तर्क के इस विषय में कभी कोई विसंवाद नहीं होता है । अतः तर्क अपने विषय में अविसंवादी है । यदि तर्क अविसंवादी न हो तो अनुमान भी अविसंवादी नहीं हो सकता है । क्योंकि अनुमान तर्कपूर्वक होता है । प्रमाणों का अनुग्राहक होने के कारण भी तर्क में प्रामाण्य मानना आवश्यक है । प्रत्यक्षादि प्रमाणों द्वारा एकदेश से ज्ञात हुएं साध्य-साधनं सम्बन्ध को तर्क सार्वदेशिक और सार्वकालिक रूप से पुष्ट करता है । इस कारण तर्क प्रमाणों का अनुग्राहक कहा जाता है। समारोप का व्यवच्छेदक होने के कारण भी तर्क में प्रामाण्य सिद्ध होता है । इत्यादि प्रकार से विचार करने पर तर्क में प्रामाण्य पूर्णरूप से सिद्ध हो जाता हैं ।
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अनुमान का लक्षण
साधनात् साध्यविज्ञानमनुमानम् ॥ १४॥
साधन से होने वाले साध्य के ज्ञान को अनुमान कहते हैं । धूम साधन है और अग्नि साध्य है । साध्य और साधन में अविनाभाव सम्बन्ध होने के कारण ही साधन साध्य का ज्ञान कराता है । पर्वत में धूम को देखकर वहाँ अग्नि का ज्ञान करना अनुमान कहलाता है । अविनाभाव शब्द का अर्थ है - साध्य के बिना साधन का न होना । अविनाभाव को