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तृतीय परिच्छेद
इस परिच्छेद में परोक्ष प्रमाणों का वर्णन किया गया है । सर्वप्रथम परोक्ष प्रमाण का लक्षण बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं
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परोक्षमितरत् ॥ १ ॥
द्वितीय परिच्छेद में बतलाया गया है कि विशद ज्ञान को प्रत्यक्ष कहते हैं । उस ज्ञान से जो भिन्न ( अविशद ) है उसे परोक्ष कहते हैं । विशद ज्ञान में किसी दूसरे ज्ञान का व्यवधान नहीं होता है, किन्तु अविशद ज्ञान ज्ञानान्तर से व्यवहित होता है । इसलिए उस ज्ञान को परोक्ष कहते हैं ।
अब परोक्ष के भेद और उनके कारणों को बतलाने के लिए सूत्र कहते हैं
प्रत्यक्षादिनिमित्तं स्मृतिप्रत्यभिज्ञानतर्कानुमानागमभेदम् ॥ २ ॥
परोक्ष प्रमाण के पाँच भेद हैं- स्मृति, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम । तथा प्रत्यक्षादि इनके कारण हैं । अर्थात् स्मृति का कारण प्रत्यक्ष है । प्रत्यभिज्ञान का कारण प्रत्यक्ष और स्मृति है । तर्क का कारण प्रत्यक्ष, स्मृति और प्रत्यभिज्ञान है । अनुमान का कारण प्रत्यक्ष, स्मृति, प्रत्यभिज्ञान और तर्क है । आगम का कारण श्रावणप्रत्यक्ष, स्मृति और संकेत है ।
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स्मृति का स्वरूप और कारण बतलाने के लिए आचार्य सूत्र कहते
संस्कारोद्बोधनिबन्धना तदित्याकारा स्मृतिः ॥ ३ ॥
. स्मृति का आकार ( स्वरूप ) है - तत् ( वह ) और इसका कारण
है धारणारूप संस्कार का उद्बोध ( प्रकट होना) । धारणा सांव्यवहारिक
प्रत्यक्ष का एक भेद है और इसी को यहाँ संस्कार कहा गया है । जब हम किसी पदार्थ का प्रत्यक्ष करते हैं तो उसके बाद आत्मा में उस पदार्थ का धारणारूप संस्कार पड़ जाता है और जब किसी निमित्त के द्वारा वह संस्कार जागृत हो जाता है तब पहले देखे हुए पदार्थ की स्मृति होती है । स्मृति का स्वरूप समझाने के लिए उदाहरण देते हैंयथा स देवदत्त इति ॥ ४ ॥
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