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६८ __ प्रमेयकमलमार्तण्ड परिशीलन
और इसकी सिद्धि वे अनुमान प्रमाण से करते हैं । ईश्वर में कर्तृत्व साधक अनुमान इस प्रकार है___क्षित्यादिकं बुद्धिमद्धेतुकं कार्यत्वात् घटादिवत् ।
क्षिति, पर्वत, वृक्ष आदि पदार्थ किसी बुद्धिमान के द्वारा निर्मित हैं, क्योंकि ये कार्य हैं, जो कार्य होता है वह किसी बुद्धिमान के द्वारा निर्मित होता है, जैसे घट । जो भी कार्य होता है उसका कोई न कोई बुद्धिमान् कर्ता अवश्य होता है । इस बात को सब जानते हैं कि घट एक कार्य है
और उसका कर्ता कुंभकार है । कर्ता के बिना घट-पट आदि कार्यों की उत्पत्ति कभी नहीं देखी गई है । इसीप्रकार पृथिवी, पर्वत आदि कार्यों का कर्ता कोई बुद्धिमान् अवश्य होना चाहिए । और पृथिवी आदि कार्यों का जो कर्ता है वही ईश्वर है । यहाँ कार्यत्व हेतु से पृथिवी आदि में बुद्धिमान् कर्ता की सिद्धि की गई है । पृथिवी आदि में कार्यत्व की सिद्धि भी सावयवत्व हेतु से होती है । जो भी पदार्थ सावयव ( अवयवसहित ) होता है वह कार्य भी होता है, जैसे प्रासाद । यतः क्षित्यादि सावयव हैं इसलिए वे कार्य अवश्य हैं।
- यहाँ कोई वादी नैयायिक से कह सकता है कि क्षिति आदि से जन्य वनस्पति आदि कार्यों की उत्पत्ति में क्षिति आदि का ही अन्वय-व्यतिरेक देखा जाता है । इस कारण इन से अतिरिक्त किसी अन्य कारण ईश्वर की कल्पना करना ठीक नहीं है । ईश्वर दृश्य भी नहीं है, तब उसको कर्ता क्यों माना जाता है । इस विषय में नैयायिकों का कहना है कि ऐसा मानने पर तो धर्म और अधर्म में भी कार्य के प्रति कारणता सिद्ध नहीं होगी । अदृष्ट ( धर्माधर्म ) भी कार्य के प्रति कारण होता है और इसी अदृष्ट के कारण जगत में प्रत्येक वस्तु किसी के सुख का और किसी के दुःख का कारण होती है । क्षित्यादि सामग्री से उत्पन्न होने वाले कार्यों का कोई बुद्धिमान् कर्ता अवश्य है, किन्तु वह कुंभकारादि की तरह उपलब्धिलक्षणप्राप्त ( दृश्य ) नहीं है, इसीलिए उसका उपलभ नहीं होता है । हम लोगों के लिए ईश्वर का अनुपलंभ उसके असत् होने के कारण नहीं है किन्तु शरीरादि के अभाव के कारण है । ईश्वर अशरीर है और कुंभकार सशरीर है । सशरीर होने से कुंभकार का उपलंभ होता है और अशरीर होने से