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________________ ८ छेदसुत्ताणि भक्त अर्थात् अपने निमित्त से बनाये गये भोजन के खाने का परित्यागी नहीं होता है। इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य से एक दिन, दो दिन या तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः नौ मास तक सूत्रोक्त मार्गानुसार इस प्रतिमा का पालन करता है । (तत्पश्चात् वह दशवी प्रतिमा को स्वीकार करता है ।) यह नवमी उपासक प्रतिमा है। सूत्र २६ (१०) अहावरा दसमा उवासग-पडिमासव्व-धम्म-रुई यावि भवइ । जाव-उद्दिट्ट-भत्ते से परिण्णाए भवइ । से गं खुरमुंडए वा सिहा-धारए वा तस्स णं आभट्ठस्स समाभटुस्स वा कप्पंति दुवे भासाओ भासित्तए, . जहा-जाणं वा जाणं, अजाणं वा णो जाणं। से णं एयारवेणं विहारेणं विहरमाणेजहण्णणं एगाहं वा दुआरं वा तिआहे वा-जावउक्कोसेण दस मासे विहरेज्जा। से तं दसमा उवासग-पडिमा। (१०) ' अब दशवी उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैं वह सर्वधर्मरुचिवाला होता है, (पूर्वोक्त सर्व व्रतों का धारक होता है) तथा उद्दिष्ट भक्त का भी परित्यागी होता है, वह शिर के बालों का क्षुरासे मुंडन करा देता है, किन्तु शिखा (चोटी) को धारण करता है, किसी के द्वारा एक बार या अनेक बार पूछे जाने पर उसे दो भाषाएँ बोलना कल्पती है । यथायदि जानता हो, तो कहे-'मैं जानता हूँ', यदि नहीं जानता हो तो कहे--मैं नहीं जानता हूँ।' इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य से एक दिन, दो दिन या तीन दिन, यावत् उत्कृष्टतः दश मास तक सूत्रोक्त मार्गानुसार इस प्रतिमा का पालन करता है । (इसके पश्चात् वह ग्यारहवीं प्रतिमा को स्वीकार करता है।) यह दशवीं उपासक प्रतिमा है ।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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