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आयारदसा
सूत्र २४
(८) अहावरा अट्ठमा उवासग-पडिमासव्व-धम्म-रुई यावि भवति । जाव-राओवरायं बंभयारी । सचित्ताहारे से परिणाए भवइ । आरम्भे से परिणाए भवइ । पेसारंभे अपरिग्णाए भवइ । से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणेजाव-जहण्णेणं एगाहं वा दुआई वा तिआहे वा जाव-उक्कोसेणं अट्टमासे विहरेज्जा। से तं अट्ठमा उवासग-पडिमा। (८) अब आठवीं उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैं
वह सर्वधर्म रुचिवाला होता है, यावत् वह दिन और रात में पूर्ण ब्रह्मचारी रहता है, सचित्ताहार का परित्यागी होता है, वह घर के सर्व आरम्भों का परित्यागी होता है, किन्तु दूसरों से आरम्भ कराने का परित्यागी नहीं होता। इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य से एक दिन, दो दिन या तीन दिन यावत् उत्कृष्टतः आठ मास तक सूत्रोक्त मार्गानुसार इस प्रतिमा का पालन करता है । (तत्पश्चात् वह नवमी प्रतिमा को स्वीकार करता है।) ___ यह आठवीं उपासक प्रतिमा है। .
सूत्र २५
(8) अहावरा नवमा उवासग-पडिमासव्व-धम्म-रुई यावि भवइ । जाव-राओवरायं बंभयारी, सचित्ताहारे से परिण्णाए भवइ । आरंभे से परिणाए भवइ । पेसारंभे से परिणाए भवइ । उद्दिट्ठ-भत्ते से अपरिण्णाए भवइ । से णं एयारूवेणं विहारेणं विहरमाणेजहण्णेणं एगाहं वा दुआहं वा तिआहं वा-जाव-उक्कोसेणं नव मासे विहरेज्जा । से तं नवमा उवासग-पडिमा। (8) अब नवमी उपासक प्रतिमा का निरूपण करते हैं
वह सर्वधर्मरुचिवाला होता है, यावत् वह दिन और रात में पूर्ण ब्रह्मचारी होता है, वह सचित्ताहार का परित्यागी होता है, वह आरम्भ का परित्यागी होता है, वह दूसरों के द्वारा आरम्भ कराने का भी परित्यागी होता है, किन्तु उद्दिष्ट