________________
२२
छेवसुत्ताणि
प्रश्न-भगवन् ! वह आचारसम्पदा क्या है ? उत्तर- आचारसम्पदा चार प्रकार की कही गई है । जैसे१ संयम-क्रियाओं में सदा उपयुक्त रहना। २ असंप्रगृहीतात्मा - अहंकार-रहित होना। ३ अनियतवृत्ति---एक स्थान पर स्थिर होकर नहीं रहना। ४ वृद्धशील---वृद्धों के समान गम्भीर स्वभाववाला होन ।
यह चार प्रकार की आचारसम्पदा है। सूत्र ४
प्र०--से कि तं सुय-संपया ? उ०-सुय-संपया चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा१ बहुस्सुए यावि भवइ, २ परिचिय-सुए यावि भवइ, ३ विचित्त-सुए यावि भवइ, . ४ घोस-विसुद्धिकारए यावि भवइ ।
से तं सुय-संपया। (२) . प्रश्न- भगवन् ! श्रुतसम्पदा क्या है ? उत्तर-श्रुतसम्पदा चार प्रकार की कही गई है । जैसे-- १ बहुश्रुतता-अनेकशास्त्रों का ज्ञाता होना । २ परिचितश्रुतता --- सूत्रार्थ से भली भाँति परिचित होना । ३ विचित्रश्रुतता (स्व-समय और पर-समय का ज्ञाता) होना । ४ घोषविशुद्धिकारकता (शुद्ध उच्चारण करने वाला) होना ।
यह चार प्रकार की श्रुतसम्पदा है । सूत्र ५
प्र०-से किं तं सरीर-संपया ? उ० सरीर-संपया चउम्विहा पण्णत्ता, तं जहा१ आरोह-परिणाह-संपन्ने यावि भवइ, २ अणोतप्प-सरीरे यावि भवइ । ३ थिरसंघयणे यावि भवइ, ४ बहुपडिपुण्णिदिए यावि भवइ ।
से तं सरीर-संपया। (३) प्रश्न-भगवन् ! शरीरसम्पदा क्या है ? उत्तर-शरीर सम्पदा चार प्रकार की कही गई हैं । जैसे१ आरोह-परिणाह-सम्पन्नता शरीर की लम्बाई-चौड़ाई का उचित
प्रमाण होना।