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________________ आयारक्सा ३ दुप्पमज्जियचारी यावि भवइ। ४ अतिरित्त-सेज्जासणिए यावि भवइ । ५ रातिणिअ-परिभासी यावि भवइ । ६ थेरोवघाइए यावि भवइ । ७ भूओवघाइए यावि भवइ । - संजलणे यावि भवइ। ९ कोहणे यावि भवइ। १० पिट्टिमंसिए यावि भवइ। ११ अभिक्खणं अभिक्खणं ओहारइत्ता भवइ । १२ णवाणं अहिगरणाणं अणुप्पण्णाणं उप्पाइत्ता भवइ । १३ पोराणाणं अहिगरणाणं खामिअ-विउसवियाणं पुणोदीरत्ता भवइ । १४ अकाले सज्झायकारए यावि भवंइ । १५ ससरक्ख-पाणि-पाए यावि भवइ । १६ सद्दकरे यावि भवइ। १७ झंझकरे (भेदकरे) यावि भवइ । १८ कलहकरे यावि भवइ । १६ सूरप्पमाण-भोई यावि भवइ । २० एसणाए असमाहिए यावि भवइ । प्रश्न :- स्थविर भगवन्तों ने वे कौन से बीस असमाधिस्थान कहे हैं ? उत्तर :-स्थविर भगवन्तों ने वे बीस असमाधिस्थान इस प्रकार कहे हैं। जैसे--- १ द्रुत-द्रुतचारी (अतिशीघ्र गमनादि करने वाला) होना प्रथम असमाधि स्थान है। ... २ अप्रमार्जितचारी होना दूसरा असमाधिस्थान है। ३ दुःप्रमार्जितचारी होना तीसरा असमाधिस्थान हैं । ४ अतिरिक्त शय्या-आसन रखना चौथा असमाधिस्थान है । ५ रात्निक (दीक्षापर्याय-ज्येष्ठ) के सामने परिभाषण करना पांचवां असमाधिस्थान है। ६ स्थविरों का उपघात करना छठा असमाधिस्थान है । ७ भूतों-(पृथिवी आदि) का घात करना सातवां असमाधिस्थान है । ... ८ संज्वलन (जलना, आक्रोश करना) आठवां असमाधिस्थान है। ६ क्रोध करना नवां असमाधिस्थान है।
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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