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________________ छेदसुत्ताणि तहेव जावसंति उड्ढे देवा देवलोयंसि, ते णं तत्थ णो अण्णेसि देवाणं अण्णं देवि अभिमुंजिय परियारेति, अप्पणो चेव अप्पाणं विउम्वित्ता परियारेंति, अप्पाणिज्जिया वि देवीए अभिमुंजिय अभिमुंजिय परियारेति जइ इमस्स तव-नियम-तं चेव सव्वं जाव-से णं सद्दहेज्जा पत्तिएज्जा रोएज्जा ? णो तिणठे समझें। अण्णत्थरूई रूइ-मायाए से य भवति । से जे इमे आरणिया, आवसहिया, गामंतिया, कण्हुइ रहस्सिया । णो बहु-संजया, णो बहु-पडिविरया सव्व-पाण-भूय-जीव-सत्तेसु, अप्पणो सच्चामोसाइं एवं विपडिवदंति"अहं ण हंतव्वो, अण्णे हंतव्वा, अहं ण अज्जावेयव्वो, अण्णे अज्जावेयव्या; अहं ण परियावेयव्वो, अण्णे परियावेयव्वा, अहं ण परिघेतव्यो, अण्णे परिघेतव्वा, अहं ण उवद्दवेयव्वो, अण्णे उवधेयव्वा ।" एवामेव इथिकामेहि मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा। जाव-कालमासे कालं किच्चा अण्णयराई असुराई किविसयाइं ठाणाई उववत्तारो भवंति । ततो विमुच्चमाणा भुज्जो एल-मूयत्ताए पच्चायति । एवं खलु समणाउसो ! तस्स णिदाणस्स जावणो संचाएति केवलि-पण्णत्तं धम्मं सद्दहित्तए वा, पत्तिइत्तए वा, रोइत्तए वा। छठा निदान हे आयुष्मान् श्रमणो ! मैंने धर्म का निरूपण किया है (आगे का वर्णन पूर्व (पृष्ठ) के समान) उदिप्त कामवासना के शमन के लिए तप-संयम की साधना का प्रयत्न करते हुए मानव सम्बन्धी काम-भोगों से उन्हें (निर्ग्रन्थ-निर्गन्थियों को) विरक्ति हो जाय । उस समय वे ऐसा सोचें कि "मानव सम्बन्धी कामभोग अध्र व हैं, अनित्य हैं (पूर्व पृष्ठ के समान) यावत् ...ऊपर की ओर देवलोक में देव हैं । वे वहां अन्य देव-देवियों के साथ अनंग क्रीड़ा नहीं करते हैं."किन्तु
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
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