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छेदसुत्ताणि
उदिप्त काम-वासना के शमन के लिए जब तप-संयम की उग्र साधना का प्रयत्न किया जाय उस समय उन्हें मानुषी काम-भोगों से विरति हो जाय । ____ यथा -- मानव सम्बन्धी कामभोग अध्र व हैं, अनित्य हैं, अशाश्वत हैं, सड़नेगलने वाले एवं नश्वर हैं।
मल-मूत्र-श्लेष्म, मेल, वात-पित्त-कफ, शुक्र एवं शोणित से उद्भूत हैं। - दुर्गन्ध युक्त श्वासोच्छ वास तथा मल-मूत्र से परिपूर्ण हैं। वात-पित्त और कफ के द्वार हैं । अतः पहले या पीछे ये अवश्य त्याज्य हैं ।
ऊपर की ओर देवलोक में देव रहते हैं । वे वहां अन्य देवियों को अपने अधीन करके उनके साथ अनंग क्रीड़ा करते हैं ।
कुछ देव विकुर्वित देव-देवियों के रूप से परस्पर अनंग क्रीड़ा करते हैं। . कुछ देव अपनी देवियों के साथ अनंग क्रीड़ा करते हैं।
यदि तप-नियम एवं ब्रह्मचर्य-पालन का फल मिलता हो तो (पूर्व पाठ के समान सारा वर्णन वाचना लेने वालों से कहलवाना चाहिए....यावत्....हम भी भविष्य में इन दिव्य भोगों को भोगें।
सूत्र ३६
एवं खलु समणाउसो ! निग्गंथो वा निग्गंथी वा णिदाणं किच्चा तस्स ठाणस्स अणालोइए अप्पडिक्कते जाव-अपडिवज्जित्ता कालमासे कालं किच्चा,
अण्णयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवतितं जहा-महड्ढिएसु महज्जुइएसु जाव-पभासमाणे । अण्णेसि देवाणं अण्णं देवि तं चेव जाव-परियारेइ ।
से गं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं तं चेव जाव-पुमत्ताए पच्चायाति जाव-"किं ते आसगस्स सदति ?"
हे आयुष्मान श्रमणो ! निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी निदान शल्य की आलोचना प्रतिक्रमण-यावत्-दोषानुरूप प्रायश्चित्त किये बिना जीवन के अन्तिम क्षणों में देह त्याग कर किसी एक देवलोक में देवता रूप में उत्पन्न होते हैं।
यथा-उत्कृष्ट ऋद्धि वाले उत्कृष्ट द्युति वाले यावत्-प्रकाशमान देवलोक में वे उत्पन्न देव अन्य देव-देवियों के साथ (पूर्व के समान वर्णन) अनंग क्रीड़ा . करते हैं। __ आयु भव और स्थिति का क्षय होने पर वे उस देवलोक से च्यक (दिव्य देह छोड़) कर (पूर्व के समान वर्णन...यावत्...) पुरुष होते हैं...यावत्... आपके मुख को कौन-सा पदार्थ स्वादिष्ट लगता है ? ।