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छेद
अहो णं सेणिए राया महढिए जाव - महासुक्खे जे णं ण्हाए, कय-बलिकम्मे, कय- कोय-मंगल-पायच्छित्ते, सव्वालंकारविभूसिए,
चेल्लणा देवीए सद्धि उरालाई, माणुसगाई, भोग भोगाई भुंजमाणे विहरति । न मे दिट्ठा देवा देवलोगंसि, सक्खं खलु अयं देवे ।
जइ इमस्स सुचरियस तव - नियम - बंभचेर - गुत्तिवासस्स कल्लाणे फल-वित्तिविसेसे अत्थि,
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तया वयमवि आगमेस्साई इमाई ताई उरालाई एयारूवाई माणुसगाई भोग भोगाई भुंजमाणा विहरामो ।
से तं
साहू 1
वहाँ ( गुणशील चैत्य में ) श्रेणिक राजा और चेलना देवी को देखकर कुछ निर्ग्रन्थ-निर्ग्रन्थियों के मन में इस प्रकार का अध्यवसाय - यावत् ... संकल्प उत्पन्न हुआ कि -
"अहो ! यह श्रेणिक राजा महान् ऋद्धि वाला.... यावत्... बहुत सुखी है । यह स्नान, बलिकर्म, तिलक मांगलिक प्रायश्चित्त कर और सर्वालंकारों से विभूषित होकर चलणा देवी के साथ मानुषिक भोग भोग रहा है ।"
हमने देवलोक के देव देखे नहीं हैं । ( हमारे सामने तो यही साक्षात् देव है | )
यदि चारित्र, तप, नियम ब्रह्मचर्य पालन एवं त्रिगुप्ति की सम्यक् प्रकार से की गई आराधना का कोई कल्याणकारी विशिष्ट फल हो तो हम भी भविष्य में अभिलषित मानुषिक भोग भोगें ।
कुछ साधुओं ने इस प्रकार के संकल्प किये ।
सूत्र २०
"अहो णं चेल्लणादेवी महिड्डिया जाव - महासुक्खा जा णं व्हाया, कयबलिकम्मा जाव — कयकोउय- मंगल पायच्छित्ता जाव - सव्वालंकारविभूसिया, सेणिणं रण्णा सद्धि उरालाई जाव - माणुसगाई भोग भोगाई भुंजमाणी विहरइ ।
न मे दिट्ठाओ देवीओ देवलोगंसि,
सक्खा खलु इमा देवी ।
जइ इमस्स सुचरियस तव नियम- बंभचेरवासस्स कल्लाणे फल-वित्तिविसेसे अस्थि,
वयमवि आगमिस्साई इमाई एयारूवाई उरालाई जाव - विहरामो ।"
साहुणी ।