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आयारदसा
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सूत्र-१७ तए णं से सेणियराया चेल्लणादेवीए सद्धि धम्मियं जाणपवरं दुरुहइ, दुरुहित्ता सकोरंट-मल्ल-दामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं, उववाइगमेणं णेयव्वं, जाव-पज्जुवासइ।
एवं चेल्लणादेवी जाव–महत्तरग-परिक्खित्ता, जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ ;
उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं वंदति-नमंसति, सेणियं रायं पुरओ काउं ठितिया चेव जाव-पज्जुवासति ।
उस समय श्रेणिक राजा चेलणा देवी के साथ श्रेष्ठ धार्मिक रथ में बैठा । छत्र पर कोरंट पुष्पों की माला धारण किये हुए (आगे का वर्णन औपपातिक सूत्र के अनुसार जानना चाहिए) यावत्...पर्युपासना करने लगी।
इस प्रकार चेलणा देवी...यावत्...दास-दासियों के वृन्द से घिरी हुई जहाँ श्रमण भगवान महावीर थे वहां आई। उसने श्रमण भगवान महावीर को वंदना नमस्कार किया . और श्रेणिक राजा को आगे करके (अर्थात् श्रेणिक राजा के पीछे) स्थित हुई ।...यावत्...पर्युपासना करने लगी।
सूत्र १८
तए णं समणे भगवं महावीरे सेणियस्स रण्णो भंभसारस्स, चेल्लणादेवीए, तीसे महइ-महालयाए परिसाए, ____ इसि-परिसाए, जइ-परिसाए, मुणि-परिसाए, मणुस्स-परिसाए, देव-परिसाए, अणेग-सयाए जाव-धम्मो कहिओ। .परिसा पडिगया। सेणियराया पडिगओ।
उस समय श्रमण भगवान महावीर ने ऋषि, यति, मुनि, मनुष्य और देवों की महापरिषद में श्रेणिक राजा भंभसार एवं चेलणा देवी को...यावत्... धर्म कहा । परिषद गई और राजा श्रोणिक भी गया।
सूत्र १६ - तत्थेगइयाणं निग्गंथाणं निग्गंयोणं य सेणियं रायं चेल्लणं च देवि पासित्ता णं इमे एयारूवे अज्झथिए जाव-संकप्पे समुप्पज्जित्था