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आयारदसा
१५३
उस समय राजा श्रोणिक ने सेनापति को बुलाकर इस प्रकार कहा :
हे देवानुप्रिय ! हाथी, घोड़े, रथ और पदाति योधागण-इन चार प्रकार की सेनाओं को सुसज्जित करो.......यावत्......मुझे सूचित करो।
सूत्र १३
तए णं से सेणिए राया जाण-सालियं सद्दावेइ, जाव-जाण-सालियं सद्दावित्ता एवं वयासी
" "भो देवाणुप्पिया ! खिप्पामेव धम्मियं जाण-पवरं जुत्तामेव उवटुवेह, उवट्ठवित्ता मम एयमाणत्तियं पच्चप्पिणाहि ।" । - उस समय श्रेणिक राजा ने यानशाला के अधिकारी को यावत्....बुलाकर इस प्रकार कहा :_____ "हे देवानुप्रिय ! श्रेष्ठ धार्मिक रथ को तैयार कर यहाँ उपस्थित करो . और मेरी आज्ञानुसार हुए कार्य की मुझे सूचना दो।
सूत्र १४
तए णं से जाणसालिए सेणियरना एवं वुत्ते समाणं हटतुट्ठ, जाव-हियए जेणेव जाणसाला तेणेव उवागच्छइ;
उवागच्छित्ता जाण-सालं अणुप्पविसइ ; अणुप्पविसित्ता जाणगं पच्चुवेक्खइ; पच्चुवेक्खित्ता जाणं पच्चोरुभति, पच्चोरुभित्ता जाणगं संपमज्जति, संपमन्जित्ता जाणगं णोणेइ, णीणेत्ता जाणगं संवद्रेति, संवत्ता दूसं पवीणेति, पवीणेत्ता जाणगं समलंकरेइ, जाणगं समलंकरिता जाणगं वरमंडियं करेइ, करित्ता जेणेव वाहण-साला तेणेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता वाहण-सालं अणुप्पविसइ, अणुप्पविसित्ता वाहणाई पच्चुवेक्खइ, पच्चुवेक्खित्ता वाहणाई संपमज्जइ, संपमज्जित्ता वाहणाई अप्फालेइ, अप्फालेता वाहणाई णोणेइ,