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छेदसुत्ताणि
महावीर के यहाँ पधारने का) प्रिय संवाद कहें। (और कहें कि) आपके लिए यह संवाद प्रिय हो । दो-तीन बार इस प्रकार कहा ।....यावत्...जिस दिशा से वे आये थे उसी दिशा में चले गए।
सूत्र ८
ते णं काले णं, ते णं समए णं समणे भगवं महावीरे आइगरे तित्थयरे जाव-गामाणुग्गामं दूइज्जमाणे जाव-अप्पाणं भावेमाणे विहरइ। .
उस काल और उस समय में पंच याम धर्म के प्रवर्तक तीर्थंकर भगवान महावीर-यावत्...आत्म-साधना करते हुए-(गुणशील उद्यान में) पधारे।
सूत्र
तए णं रायगिहे नयरे सिंघाडग-तिय-चउक्क-चच्चर-एवं जाव-परिसा निग्गया, जाव-पज्जुवासइ।
उस समय राजगृह नगर के त्रिकोण =तिराहे चौराहे और चौक में होकर....यावत्...परिषद् नगर के बाहर निकली...यावत् पर्युपासना करने लगी।
तए णं महत्तरगा जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणे व उवागच्छंति, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो वंदंति नमसंति, वंदित्ता, नमंसित्ता नाम-गोयं पुच्छंति, नाम-गोयं पुच्छित्ता नाम-गोयं पधारेंति, पधारित्ता एगओ मिलंति, एगओ मिलित्ता एगंतमवक्कमंति, एगंतमवक्कमित्ता एवं वयासी"जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया भंभसारे दसणं कंखति, जस्स णं देवाणुप्पिया! सेणिए राया दंसणं पीहेति, जस्स गं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया सणं पत्थेति, जस्स णं देवाणुप्पिया ! सेणिए राया दंसणं अभिलसति,