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१.४२
छेदसुत्ताणि
आठवाँ मोहनीय स्थान__ जो निर्दोष व्यक्ति पर मिथ्या आक्षेप करता है अथवा अपने दुष्कर्मों का उस पर आरोपण करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। ॥८॥ नोवाँ मोहनीय स्थान_' जो कलहशील है और भरी सभा में जान-बूझकर मिश्र भाषा (सत्य में मिथ्या मिलाकर) बोलता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥६॥
दशवाँ मोहनीय स्थान_ जो कूटनीतिज्ञ मंत्री किसी बहाने से राजा को राज्य से बाहर भेजकर राज्य लक्ष्मी का उपभोग करता है, रानियों का शील खंडित करता है और विरोध करने वाले सामन्तों का तिरस्कार करके उनके भोग्य पदार्थों का विनाश करता है, वह महामोहनीय कम का बन्ध करता है ॥१०-११॥ ग्यारहवाँ मोहनीय स्थान___ जो बालब्रह्मचारी नहीं होते हुए भी अपने आपको बालब्रह्मचारी कहता है. और स्त्रियों का सेवन करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥१२॥ बारहवाँ मोहनीय स्थान___ जो ब्रह्मचारी नहीं होते हुए भी "मैं ब्रह्मचारी हूँ" इस प्रकार कहता है वह मानों गायों के बीच में गधे के समान बेसुरा बकता है और आत्मा का अहित करने वाला वह मूर्ख मायापूर्वक मृषा बोलकर स्त्रियों में आसक्त रहता हैं अतः महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । ॥१३-१४।। तेरहवाँ मोहनीय स्थान
जो जिसका आश्रय पाकर आजीविका कर रहा है और जिसके यश से अथवा जिसकी सेवा करके समृद्ध हुआ है-आसक्त होकर उसी के सर्वस्व का अपहरण करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ।।१५।। चौदहवाँ मोहनीय स्थान
जो अभावग्रस्त किसी समर्थ व्यक्ति का या ग्रामवासियों का आश्रय पाकर सर्व साधन सम्पन्न बन जाता है वह यदि ईर्ष्या से आविष्ट एवं संक्लिष्ट चित्त होकर आश्रयदाताओं के लाभ में अन्तराय उत्पन्न करता है तो महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है। ।।१६-१७।।