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आयारदसा .
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" श्रमण भगवान महावीर ने सभी निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थियों को आमन्त्रित कर इस प्रकार कहा__ हे आर्यो ! जो स्त्री या पुरुष इन तीस मोहनीय स्थानों का कलुषित परिणामों से पुनः-पुनः आचरण करता है वह मोहनीय कर्म का उत्कृष्ट अनुबन्ध करता है। यथा-(गाथाएँ) पहला मोहनीय स्थान
जो त्रस प्राणियों को जल में डुबोकर या (किसी यन्त्र विशेष से) प्रचण्ड वेग वाली तीव्र जलधारा डालकर उन्हें मारता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥१॥ दूसरा मोहनीय स्थान__जो प्राणियों के मुंह नाक आदि श्वास लेने के द्वारों को हाथ से अवरुद्ध कर उन्हें मारता है वह महामोहनीय कर्म बाँधता है ॥२॥ तीसरा मोहनीय स्थान-- ___ जो अनेक प्राणियों को एक घर में घेर कर अग्नि के धुएँ से उन्हें मारता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥३॥ चौथा मोहनीय स्थान
' जो किसी प्राणी के उत्तमाङ्ग शिर पर शस्त्र से प्रहार कर उसका भेदन करता है वहा महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है.॥४॥ पांचवां मोहनीय स्थान.. जो तीव्र अशुभ परिणामों से किसी प्राणी के सिर को गीले चर्म के अनेक
वेस्टनों से वेष्टित करता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । ॥५॥ छठा मोहनीय स्थान
जो किसी प्राणी को छलकर के भाले से या डंडे से मारकर हँसता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है । ॥६॥ सातवाँ मोहनीय स्थान- जो गूढ़ आचरणों से अपने मायाचार को छिपाता है, असत्य बोलता है और सूत्रों के यथार्थ अर्थों को छिपाता है वह महामोहनीय कर्म का बन्ध करता है ॥७॥