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छेदाण
इस सूत्र में "वेउब्विया" और "साइज्जिया" ये दो शब्द विशेष अर्थं वाले हैं ।
(१) कल्पसूत्र की टीका निर्युक्ति और चूर्णी आदि में " वेउग्विया " शब्द का संस्कृत रूपान्तर नहीं दिया गया है ।
श्री पुण्यविजयजी म० सम्पादित कल्पसूत्र के आचार्य पृथ्वीचन्द्र कृत टिप्पनों में "वेडव्विया" शब्द का टिप्पन इस प्रकार है ।
"वेडव्विया पडिलेहणा का समाचारी ? उच्यते
(क) पुणो पुणो पडिले हिज्जंति संसते ।
(ख) असंसते वि तिन्नि वेलाओ
“१ पुब्वण्हे, २ भिक्खंगएसु, ३ वेयलियं ति तृतिय पौरुष्यामिति ।” (२) महोपाध्याय धर्मसागर विरचित कल्पसूत्र किरणावली में" साइज्जिया " का अर्थ इस प्रकार दिया गया है ।
5." साइज्जिआ पमज्जणत्ति आर्षे 'साइज्ज धातुरास्वादने वर्तते, तत्र उपभुज्यमानो य उपाश्रयः । स चं कयमाणे कडे' इति न्यायात् 'साइज्जिओ' त्ति भण्यते, तत्सम्बन्धिनी प्रमार्जनाऽपि 'साइज्जिआ' अयं भावः - - यस्मिन्नुपाश्रये स्थिताः साधव स्तं १ प्रातः प्रमार्जयन्ति २ पुनभिक्षागतेषु साधुषु, ३ पुनः प्रतिलेखनाकाले तृतीय प्रहरान्त चेति वारत्रयं प्रमार्जयन्ति वर्षासु ऋतु बद्धे तु द्वि । यत्तु सन्देहविषौषध्यां बार चतुष्टय प्रमार्जनमुक्तं तदयुक्तम्" चूर्णौ वार त्रयस्यैवोक्तत्वात् । अयं च विधिरसंसक्ते । संसक्ते तु पुनः पुनः प्रमार्जयन्ति शेषोपाश्रय द्वयं प्रतिदिनं प्रति लिखन्ति — प्रत्यवेक्षन्ते । मा कोऽपि तत्र स्थास्यति, ममत्वं वा करिष्यतीति तृतीय दिवसे पाद प्रोज्छनकेन प्रमार्जयन्ति ।"
जिस उपाश्रय में निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थियां ठहरे हुए हों उस उपाश्रय का प्रमार्जन उन्हें दिन में तीन बार करना चाहिए और शेष दो उपाश्रयों का प्रतिलेखन उन्हें दिन में तीन बार करना चाहिए तथा तीसरे दिन प्रमार्जन भी करना चाहिए ।
( १ ) पूर्वाह में - प्रातः काल में,
(२) मध्याह्न में - भिक्षा के लिए जाने के बाद,
(३) अपराह्न में – दैनिक प्रतिलेखना के बाद तीसरी पोरुषी में ।
प्रतिदिन प्रतिलेखन करने का उद्देश्य यह है कि उन्हें खाली पड़े देखकर
उनमें कोई निवास न करले या उन पर अधिकार न करले ।