SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 13
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ आचारदशा : एक अनुशीलन --विजय मुनि, 'शास्त्री' स्थानकवासी-परम्परा ने जिन आगमों को वीतराग-वाणी के रूप में स्वीकृत किया है, उनकी संख्या ३२ होती है । जो इस प्रकार है-एकादश-अंग, द्वादश उपांग, चार मूल, चार छेद तथा एक आवश्यक सूत्र । आगम-वाङ्मय में जीवन से संबद्ध प्रत्येक विषय का संक्षेप तथा विस्तार रूप में प्रतिपादन किया गया है । धर्म, दर्शन, संस्कृति, सभ्यता, इतिहास तथा कला आदि साहित्य के समग्र अंगों का समावेश हो गया है । मुख्य रूप में इन आगमों में धर्म और दर्शन का अत्यन्त विस्तार के साथ प्रतिपादन उपलब्ध होता है। छेद-सूत्रों की संख्या दशाश्रुतस्कंध, बृहत्कल्प, व्यवहार और निशीथ-ये चार छेद सूत्र हैं । इन चार के अंतिरिक्त महानिशीथ, पंचकल्प अथवा जीतकल्प भी छेद सूत्र के नाम से प्रसिद्ध हैं। सम्भवतः छेद नामक प्रायश्चित को दृष्टि में रखते हुए इन सूत्रों को छेद सूत्र कहा जाता है। सामान्यतः इनमें श्रमण-जीवन से सम्बन्धित सभी विषयों का किसी न किसी रूप में समावेश कर दिया गया है। इस प्रकार छेद सूत्रों का श्रमण-जीवन में उत्सर्ग और अपवाद की दृष्टि से विस्तृत वर्णन किया गया है। साधनामय जीवन में यदि कोई दोष संभवित हो जाए, तो उससे कैसे बचा जाए-मुख्य विषय इन छेद सूत्रों का यही रहा है। परम्परा के अनुसार छेद सूत्रों का प्रकाशन तथा सार्वजनिक रूप से उन पर प्रवचन वर्जित था । परन्तु साहित्य-सरिता के प्रवाह ने उन मर्यादाओं का अतिक्रमण कर दिया और पूज्य अमोलक ऋषि जी महाराज ने प्रथम बार छेद सूत्रों का हिन्दी अनुवाद के साथ प्रकाशन करवाया। इस प्रकाशन से छेद सूत्रों की गोपनीयता परिसमाप्त हो गई। इतना ही नहीं कुछ अर्द्ध-दग्ध व्यक्तियों ने छेद-सूत्रों के हिन्दी अनुवाद को पढ़कर साधु-जीवन के सम्बन्ध में अनर्गल बकवास भी प्रारम्भ कर दी थी। आज इस प्रकार की कोई गोपनीयता स्थिर नहीं रह सकती । आज का युग शोघ युग है। भारत के अनेक प्रान्तों में अनेक विश्व-विद्यालयों से अनुसंधान करने वाले छात्र छेद सूत्रों पर अपने-अपने शोध-प्रबन्ध प्रस्तुत कर चुके हैं। अभी-अभी निशीथ चूणि पर डॉ० श्रीमती मधुसेन का महत्वपूर्ण शोधप्रबन्ध प्रकाशित हुआ है, जिसके परिशीलनं एवं
SR No.002225
Book TitleChed Suttani Aayar Dasa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherAagam Anyoug Prakashan
Publication Year1977
Total Pages210
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_dashashrutaskandh
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy