________________
आयारदसा
88
सूत्र २६ * वासावासं पज्जोसवियस्स छट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति दो गोअरकाला... गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा ।८/२६॥
वर्षावास रहे हुए छट्ठ भक्त करने वाले भिक्षु के लिए दो गोचर काल का विधान है। अतः गृहस्थों के घरों में भक्त पान के लिए दो बार निष्क्रमण-प्रवेश करना कल्पता है। (एक दिन में दो बार आहार कर सकता है)।
सूत्र २७
वासावासं पज्जोसवियस्स अट्ठमभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति तओ गोअरकाला""गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा 1८/२७॥
वर्षावास रहे हुए अट्ठम भक्त करने वाले भिक्षु के लिए तीन गोचर काल का विधान है । अतः गृहस्थों के घरों में भक्त-पान के लिए तीन बार निष्क्रमणप्रवेश करना कल्पता है । (एक दिन में तीन बार आहार कर सकता है ।)
सूत्र २८
वासावासं पज्जोसवियस्स विगिट्ठभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वे वि गोअर काला 'गाहावइकुलं भत्ताए वा, पाणाए वा, निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा1८/२८॥
- वर्षावास रहे हुए विकृष्ट भोजी (चार-पाँच आदि उपवास करने वाले) भिक्षु के लिए इच्छानुसार गोचरकाल का विधान है। अतः गृहस्थों के घरों में भक्त पान के लिए उसे इच्छानुसार निष्क्रमण-प्रवेश करना कल्पता है । सूत्र २६
पानक ग्रहण-रूपा नवमी समाचारी वासावासं पज्जोसवियस्स निच्चभत्तियस्स भिक्खुस्स कप्पंति सव्वाई पाणगाइं पडिगाहित्तए 1८/२६।
नवमी पानक ग्रहण-रूपा समाचारी वर्षावास रहे हुए नित्यभोजी (एक बार आहार करने का नियम रखने वाले) भिक्षु के लिए सभी प्रकार के पानक (पेय द्रव्य) ग्रहण करना कल्पता है ।