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||८६] (कारण कार्य) चिन्तन हैम संस्कृत-भव्य वाक्य संग्रह वखणाशे
आवीश तो यात्रा थशे | जो हेली माउन्टाबु जशे तो ९३. जो राजु बजारमा जशे तो. त्यांनी कोतरणीना फोटा सामान लावशे पाडशे
|९४. जो संसारी सम्बन्धी आवशे तो | जो · बालकोने संस्कार (मने) वातो करावशे वाटिकामां मोकलशो तो ९५. जो शर्मिला चा पीशे तो भविष्यमा आगल वधशे खराब आदत पडशे भारती ! जो तुं छरी पालित | ९६. शालिभद्र ! जो (तमे) लमारे संघमां जईश तो साधु | घेर जशो तो तमने तमारी माँ जीवननी चर्यानो अनुभव थशे गोचरी वहोरावशे स्वीटी ! जो तुं स्कूल जईश | ९७. जो तमे भूख्या रहेशो तो तो ज्ञान मलशे
उणोदरी व्रत थशे... सञ्जय ! जो तुं पूजा करीश तो | ९८. जो तुं अभिमान राखीश तो (तारूं) पुण्य बंधाशे
(तने) केवलज्ञान नहिं थाय | जो पेनमां साही हशे तो ९९. जो सुरसुन्दरी जागशे तो अमर वाक्यो लखाशे (मया) कुमारने गोतशे जो संस्कृत बूक हशे तो | १००.जो माछली पाणीमां रहेशे तो नियमो थशे
जीवशे जो (मने) रजोहरण मलशे तो १०१. जो महाबल मलया सुन्दरीने मारी इच्छा पूर्ण थशे । बोलावशे तो राजा क्रोधित श्रीपाल-श्रेणिक ! जो तमे थशे . | संसार तजशो तो (तमने) १०२. जो नर्मदा ! तुं धर्मनुं पालन संयम मलशे
करीश तो शिव मन्दिरमा मोसम ! जो तुं गोखीश तो निवासी बनीश तारा सूत्रो पाकां थशे १०३. जो बालकोने तरस लागशे तो जो चोक पीस हशे तो साहेब | पाणी माँगशे वडे बोर्ड पर लखाशे १०४. जो सासु गुस्सो करशे तो मने | जो झाड उपरथी फल पडशे घरथी बहार काढशे .
तो बालक लेवा दोडशे १०५. जो तुं भणीश तो मने आनन्द ९२. | अनीता ! जो तुं पालिताणा| थशे ।
मावश