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________________ ८४ .(कारण कार्य ) २५. जो मयणा धर्मने पाळशे तो | परीक्षामां पार उतरशे २६. जो गजसुकुमाल समता | राखशे तो मोक्षने पामशे २७. जो हुं गुरुदेवनी निश्रामां रहीश | तो मारो उद्धार थशे २८. जो आचार्य भगवन्तना पगला थाय तो आंगण पावन थाय २९. जो तुं प्रभुनी भक्ति करीश तो भवने तरीश ३०. जो सीता हा पाडशे तो लवकुश रामने मलवा जशे ३१. जो साधु शुद्ध आचार पालशे तो वैराग्य दृढ बनशे ३२. जो अमे जयणा पालशुं तो ४६. जो पवन आवशे तो कपडां निरोगी रहीशुं ३४. जो इन्द्रभूति समवसरणमां जशे तो गौतम बनशे चिन्तन हैम संस्कृत - भव्य वाक्य संग्रह नगरीना द्वार उघडशे जो लोको नेमनाथनी जान. जोशे तो घेला थशे जो कृष्ण हा पाडशे तो पर णावाशे जो भरवाड अने भरवाडण बलदेव मुनिने वहोरावशे तो मोक्षमां जशे संकेत ! जो तुं सेवा करीश तो (तुं ) मेवा मेलवीश ४४. जो कृष्ण आवशे तो माटलुं फोडशे ४५. जो शर्मीष्टा नाचशे तो घुघरूं बाँधशे ३५. ४०. उड ३३. जो हरेश भाई आवशे तो ४७. मालती ! जो तुं रमीश तो तारो | संस्कृत भणावशे पहेलो नम्बर आवशे खाशे ३७. जो वरसाद वरसशे तो जीनु अने गुञ्जन भींजाशे ३८. जो देव आवशे तो पुष्प वृष्टि करशे जो सुभद्रा सती चारणीथी पाणी काढशे तो चम्पा ३९. ४१. ४२. ४३. जो ब्राह्मी सुन्दरी आवशे तो ४९. मानसी ! जो तुं तडके भाईनो अहंकार तुट रखडीश तो ( तारुं ) माथु ३६. जो अल्पा पीरसशे तो बालको ४८. हितेश ! जो तुं जङ्गलमां जईश तो डरीश ५०. ५१. ५२. ५३. दुःख लोको जो मदारीने जोशे तो दोड निर्मल ! जो तुं सारुं भणीश तो विद्वान् बनीश जो तुं बारणा खुल्ला मुकीश तो चोर आवशे जो कीर्ति भाई आवशे तो
SR No.002223
Book TitleChintan Haim Sanskrit Bhavya Vakya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaresh L Kubadiya
PublisherHaresh L Kubadiya
Publication Year2005
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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