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________________ | चिन्तन हैम संस्कृत - भव्य वाक्य संग्रह ( विशेषण - विशेष्य-कृदन्त ) ७५ कहेतो परमात्माने हैयाभीनी श्रद्धाथी भावपूर्वक नमस्कार करे छे काला रीक्षामा बेसाडवा जाय छे ने साथै सुन्दर एवा चित्रवाली बूक अने पेन तेमज | स्वादिष्ट काजु - द्राक्षवालो | चेवडो लंच बोक्षमां भरी आपे छे ३२. विशाल विनीता नगरी ना गम्भीर अने महा पराक्रमी प्रथम चक्रवर्ती भरत महाराजा सुन्दरं भव्य आरिसा भुवनमां अनित्य भावना भावतां भावतां चार घाती कर्म रूपी शत्रुथी विजयी बनी उत्कृष्ट अद्भूत अप्रतिपाती केवल ज्ञानने पामे छे ३३. पवित्र गिरिराज पर भाव पूर्वक चढतो भक्तिवान् श्रावक | पोतानी शुभ भावनाथी अपार इच्छाने पोताना मनोबलने पूर्ण करवा माटे भवी लोकोनी साथे उल्लास पूर्वक प्रभुना मधुर गीत गातो शाश्वत गिरिने स्पर्शना करतो मननी भावनाथी डोलतो जयणा पूर्वक चालतो दादाना दर्शन माटे दौडतो मनोहर मूर्ति त्रिलोकी नाथने निरखतां अनराधार आंसु वरसावतो | मोटी स्तुति बोलतो पोताना जीवननी करुण कथनी ३४. ३५. भव्य मथुरा नगरीमां माखण चोर शामलीयो पोताना मित्र साथे नगरीमां रमतो पोताना महान् पराक्रमथी शेष नागने | डरावतो घरोनी लाल मटकी फोडतो अप्सरा जेवी गोपीओ साथे फरतो साक्षात् रम्भा समान राधा साथे मधुर कोकिल कण्ठथी मोरली वगाडतो पूज्य पिताश्री वासुदेवनी पूर्ण आज्ञा पालतो पोताना ज्येष्ठ बन्धु गम्भीर बलदेवनी साथे गुरुकुलमां शान्त मूर्ति, प्रभावशाली गुरुदेव पाथी धार्मिक विद्या स्थिर मनथी उत्कृष्ट भावनाथी प्राप्त करीने कपटी कंस सा घोर रणमां महान् बलथी घोर युद्ध करीने विजयी बनी विशाल नगरीनो राजा बने छे पूज्य पिताश्री साथे अणमोल मुक्तिनो पंथ ग्रहण करवा तत्पर बनेलो रत्नत्रयी चारित्रने मेलववा झंखतो अमूल्य रजोहरण झीलवा उत्कृष्ट भावनाथी दोडीं रहेलो अरणिक दीक्षा ग्रहण करीने
SR No.002223
Book TitleChintan Haim Sanskrit Bhavya Vakya Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHaresh L Kubadiya
PublisherHaresh L Kubadiya
Publication Year2005
Total Pages134
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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