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. लिङ्गानुशासनम्। (१२७) नीका कञ्चूलिकाऽऽल्लुका कलिकया
राका पताकान्धिका, शका पूपलिका त्रिकाचविकयोल्का पश्चिका पिण्डिका॥१०॥ ध्रुवका क्षिपका कनीनिका शब्बूका शिबिका गवेधुका । कणिका केका विपादिका मिहिका यूका मक्षिकाऽष्टका
कृर्चिका कृचिका टीका कोशिका केणिकोर्मिका। जलौका प्राचिका धूका कालिका दीर्घिकोष्ट्रिका ॥ १२ ॥ शलाका वालुकेषीका विहङ्गिकेषिके उखा। परिखा विशिखा शाखा शिखा भङ्गा सुरङ्गया ।। १३ ॥ जङ्घा चश्चा कच्छा पिच्छा पिञ्जा गुञ्जा खजा प्रजा। झञ्झा घण्टा जटा घोण्टा पोटा भिस्सटया छटा ॥१४॥ विष्ठा मञ्जिष्ठया काष्ठा पाठा शुण्डा गुडा जडा । बेडा वितण्डया दाढा राढा रीढावलीढया ॥ १५ ॥ घृणोर्णा वर्वणा स्थूणा दक्षिणा लिखिता लता। तृणता त्रिवृता त्रेता गीता सीता सिता चिता ॥ १६ ॥ मुक्ता वार्ता लूताऽनन्ता प्रमृता मार्जिताऽमृता। कन्था मर्यादागदेक्षुगन्धागोधा स्वधा सुधा ॥ १७ ॥ सास्ना सूना धाना पम्पा झम्पा रम्पा प्रपा शिफा । कम्बा भम्भा सभा हम्भा सीमा पामारुमे उमा ॥ १८ ।। चित्या पद्या पर्या योग्या छाया माया पेया कक्ष्या। दूष्या नस्या शम्या सन्ध्या रथ्या कुल्या ज्या मङ्गल्या
॥१९॥ उपकार्या जलानॆरा प्रतिसीरा परम्परा ॥ कण्डराऽसृग्धरा होरा वागुरा शर्करा शिरा ॥ २० ॥