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________________ स्वोपज्ञवृचिसहितम् [ ८३९ ] रहवस- भमिरु करग्गुल्लालिउ घरहि जि कोन्तु गुणइ सो नालिउ ॥ दिवेहिं वित्तउं खाहि वढ || नवस्य नवखः । नवखी कवि विसगण्ठि || अवस्कन्दस्य दडवडः । चलेहिं चलन्तेहिं लोअणेहिं जे तई दिट्ठा बालि । तर्हि मयरद्धय - दडवडउ पडइ अपूरइ कालि ॥ यदेश्छुडुः । छुडु अग्घइ ववसाउ | सम्बन्धिनः केर-तणौ ॥ उ केसरि पिअहु जलु निच्चिन्तरं हरिणाई || सु जसु केरएं - हुंकारडएं मुहुं पडन्ति तृणाई || अह भग्गा अम्हहं तणा ॥ मा भैषीरित्यस्य मन्भीसेति स्त्रीलिङ्गम् । A सत्थावत्थं आलवणु साहु वि लोउ करेइ । आदन्नहं मन्भीसडी जो सज्जणु सो देइ || यच दृष्टं तत्तदित्यस्य जाइंट्ठआ । जइ रचसि जाइट्टिए हिअडा मुद्ध-सहाव ! लोहें फुणएण जिवँ घणा सहेसइ ताव ।। ४२२ ॥ हुहरु - घुग्घादय शब्द - चेष्टानुकरणयोः | ८|४ |४२३ ॥ अपभ्रंशे हुहुर्वादयः शब्दानुकरणे घुग्घादद्यश्रेष्ठानुकरणे यथासंख्यं प्रयोक्तव्याः ॥ महं जाणिउं बुडीसु हउं पेम्म-द्रहि हुहुरु त्ति । नवर अचिन्तिय संपडिय विप्पिय नाव झडत्ति ॥ आदिग्रहणात् । खज्जइ नउ कसरकेहिं पिज्जा नउ घुण्टेहिं । एम्बर होइ सुहच्छडी पिएं दिट्ठे नयणेहिं ॥ इत्यादि ॥
SR No.002220
Book TitleSiddh Hemchandra Vyakaranam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHimanshuvijay
PublisherAnandji Kalyanji Pedhi
Publication Year
Total Pages1054
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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