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स्वोपशवृत्तिसहितम् [८३५] पिय-संगमि कउ निद्दडी पिअहो परोक्खहो केम्व । मई विनि वि विनासिआ निद्द न एम्ब न तेस्त्र । परमः परः । गुणहि न संपय कित्ति पर ।। सममः
. समाणुः। कन्तु जु सीहहो उवमिअइ सं महु खण्डिउ माणु। सीहु निरक्खय गय हणइ पिउ पय-रक्ख-समाणु ॥ ध्रुवमो ध्रुवुः। चश्चलु जीविउ ध्रुवु मरणु पिअरूसिजइ काई। होसई दिअहा रूतणा दिव्वई वरिस-सयाई । मी मं। मं धणि करहि विसाउ॥ प्रायोग्रहणात्। माणि पणइ जह न तणु तो देसडा चइज । .. मा दुजणं-कर-पल्लवेहि देसिज्जन्तु भमिज ॥ लोणु विलिज्जइ पाणिएण अरि खल मेह म गज्जु ।। बालिउ गलह सुझुम्पडा गोरी तिम्मइ अज्जु ॥ मनाको मणाउं॥ विहवि पणहह वङ्गुडउ रिद्धिहि जण-सामन्नु । कि पि मणाउं महुपिअहो ससि अणुहरइ न अन्नु ॥४१८॥ किलाथवा-दिवा-सह-नहेः किराहवइ दिवे सई
. नाहिं। ८।४। ४१९ । . अपभ्रंशे किलादीनां किरादय आदेशा भवन्ति । किलस्य किरः॥ किर खाइ न पिअह न विद्दवइ धम्मि न वेच्चइ रूअउउ । इह किवणु न जाणइ जइ जमहो खणेण पहुचइ अडउ ।। अथवोहवइ । अहवह न सुवंसहं एह खोडि ।। मायोधि.
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