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नवतत्वक्रमहेतुविचारः
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व्योनी ग्रहणादि क्रिया करनार, पुण्य-पाप-आश्रव-संवर-बन्ध--निजरा-अने मोक्षतत्त्वनी क्रियाओमां प्रवृत्तिकरनार जीवज छे, तेमज जीव विना तेना विरोधी अजीवनी तथा पुण्यादितत्त्वोनी उपपत्ति पण थइ शके नही माटे प्रथम जीवतत्त्व कयु. जीवोनाते ते भेदोनी व्यवस्था तथा परभवमां गमनागमन विगेरे धर्मास्तिकायादि अजीवतत्त्व सिवायथाय नही माटे बीजं अजीवतत्व. ते अजीवना कर्मस्वरूप विकारोज पुण्य पाप छे, तेमां पण प्रशस्त होवाथी त्रीजुं पुण्यतत्त्व अने चोथु पापतत्त्व. ते बन्नेनुं शुभाशुभ आश्रव विना ग्रहण थइ शके नही माटे पांचमुं आश्रवतत्त्व. ज्यारे आश्रवथी कर्म आवे छे त्यारे तेने रोकनार तत्त्व होवु जोइये माटे छटुं संवरतत्त्व. जेम संवरथी नवांआवतां कमों अटके छे तेम जुना कर्मोंने क्षयकरनार तत्त्व पण होवु जोइए माटे सातमु निर्जरातच का. आश्रवथी आवेलां कर्मों जीवनी साथे सूचिकलापनादृष्टान्ते बद्धस्पृष्टादि अवस्थाये संबद्ध थया सिवाय फळ आपी शके नही. तेमज निर्जराथी जीवसंबद्ध जुनां कर्म ज्यारे वियुक्त थाय छे त्यारे तेनुं विरोधी जीव साथे कर्मोंने संयुक्त करनार तत्व पण कहेवू जोइए माटे आठमुंबन्धतत्त्व कडं. ज्यारे जीवनी साथे कर्मोनो संबंध थाय छे त्यारे तेनो सर्वथा मोक्ष पण होवो जोइए. वळी ते (मोक्ष) सर्वोत्कृष्ट होवाथी अने तेने जमाटे सर्व ग्रन्थनी प्रवृत्ति होवाथी सर्व ग्रन्थना निःस्यन्द( सार ) रूप नवमुं मोक्ष तत्व कयु.
- प्रथम गाथार्नु रहस्य. ___ आप्रथम गाथाये करी शिष्टाचारने पाळवा माटे निर्विघ्नपणे ग्रन्थनी समाप्ति थाय ते माटे वस्तुस्वरूपसंकीर्तन' रूप मंगलाचरण १, तथा श्रोतृप्रवृत्तिना हेतुरूप ग्रन्थ- अभिधेय २, तथा नवतचनुं ज्ञान मे
१-२ एमां नमस्कार, आशीर्वाद, अने वस्तुसंकीर्तन, ए