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________________ (३४६) ॥ श्री नवतत्व विस्तरार्थः ॥ एकसिध्ध, अने एक समयमां पण अनेक सिध्ध थया ते अनेक सिध्ध कहेवाय. विस्तरार्थ:-गुरुए उपदेश आप्याथी बोध पामेला ते श्री जंबूस्वामि वगेरे अनेक जीवो बुध्धबोधित सिध्ध (-बुध्ध एटः ले गुरु आदिकथी बोधित एटले बोध पामेल ) कहेवाय.. .' तथा एक समयमा एकलोजमोक्षे गया होय ते श्रीमहावीरस्वामि वगेरे एकसिध्ध कहेवाय कारणके श्रीमहावीरस्वामि जे समये मो. क्षे गया ते समये तेमनी साथे कोइपण केवलि मोक्षे गया न. थी. तथा एक समयमां अनेक सिद्ध थया होय तेवा श्रीऋषभदेव विगेरे अनेकसिद्ध कहेवाय, कारणक श्रीऋषभदेव जे समये मोक्षे गया छे ते समये पोताना ९९ पुत्र अने ८ भरतचक्रिना पुत्र मळी १०८ जीवो मोक्षे गया छे, ...आ प्रमाणे पंदरभेदे मोक्ष पामनाराना दृष्टान्ते वताव्या आ नवतस्वनी यथार्थ सद्दहणा करनार जीव सम्यक्त्व पामी परम्पराए सिद्धिपद संपादन करे छे, H asreserevendrentre १ ॥ इति श्रीमोक्षवविस्तरार्थः ॥ १ ॥ तत्समाप्तौ च ॥ * ॥ श्रीनवतत्त्वविस्तरार्थः संपूर्णः ॥ rojme care are a reas
SR No.002215
Book TitleNavtattva Vistararth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Granth Prakashak Sabha
PublisherJain Granth Prakashak Sabha
Publication Year1923
Total Pages426
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, B000, & B010
File Size7 MB
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